हनुमान चालीसा और आरती, बजरंग बाण श्रीं राम स्तुति ||

 

 

हनुमान चालीसा और आरती, बजरंग बाण श्री राम स्तुति || हनुमान चालीसा ||

मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है, इससे शनि जनित पीड़ा से मुक्ति मिलती है, (चाहे शनि की ढैय्या हो या साढ़े साती)। आजकल में हनुमान जी के तीर्थ में श्रद्धालु भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं साथ ही अपनी प्रिय बूरी का प्रसाद चढ़ाते हैं। बजरंगबली को संकटमोचक भी कहा जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों को सभी संकट दूर कर देते हैं। शास्त्रों और पुराणों में हनुमान जी को मंत्रमुग्ध करने के लिए मंगलवार दोपहर को हनुमान जी को मंत्रमुग्ध कर दें। आइए शुरू करें हनुमान चालीसा का पाठ –

 

दोहा :

 

श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनुं रघुबर बिमल जसु, जो ठीकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु कल मोहिं, हरहुसे बिकार।।

 

चौपाई :

 

जय हनुमान् ज्ञान गुण सागर।

जय कपीस तिहुं लोक संपर्क।।

 

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

 

महावीर बिक्रम बजरंग

कुमति निवार सुमति के संगी।।

 

कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा।।

 

हाथ बज्र औ ध्वजा बिजय।

कंधे मूंज जनेऊ साजै।

 

संरा सुवन केसरीनंद।

तेज प्रताप महा जग बंधन।।

 

विद्यावान गुणी अति चतुर।

राम काज करिबे को आतुर।।

 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लक्ष्मण सीता मन बसिया।।

 

सूक्ष्म रूप धरि सियाहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

 

भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचन्द्र के काज संवारे।।

 

लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

 

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

मम तुम भरत प्रियहि सम भाई।।

 

सहस बदन तुम्म्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ समर्पण।।

 

सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा।

नारद सारद सहित अहिसा।।

 

जम कुबेर दिगपाल जहं ते।

कबि कोबिद कहि साके स्थान ते।।

 

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

 

तुम्म्हरो मंत्र बिभीषन माना।

लंकेश्वर भए सब जग जाना।।

 

जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि फल मधुर जानु।।

 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लंबी गई अचरज नहीं।।

 

दुर्गम काज जगत के जेते।

सहज अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

 

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसेरे।।

 

सब सुख लहै विवाह सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना।

 

आपन तेज सम्हारो आपै।

त्रिलोक हांक तेन कांपै।।

 

भूत पिशाच निकट नहीं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।।

 

नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

 

संकट तेन हनुमान् सिद्धांतवै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

 

सब पर राम तपस्वी राजा।

तीन के काज सकल तुम साजा।

 

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै।।

 

चारो जुग परतापप्रिय।

परमसिद्ध जगत उजियारा।।

 

साधु-संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।।

 

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।

 

राम रसायन तुम्हारे पास।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

 

तुम्हारे भजन राम को पावै।

जन्म-जन्म के दुःख बिसारवै।।

 

अंतकाल रघुबर पुर जाई।

जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

 

और देवता चित्त न धरै।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करै।।

 

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

 

जय जय जय हनुमान् गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नईं।।

 

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई।।

 

जो यह पढ़ें हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

 

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मंह।।

 

 

दोहा

 

पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप।

 

राम लक्ष्मण सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

 

 

 

श्रीराम स्तुति, श्री राम स्तुति

 

 

 

श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भयदारुणं।

 

नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज पद कंजारुणं।।

 

कंदर्प अगणित अमित छवि, नवनील-नीरज सुंदरं।

 

पत् पीत मनहु तदित शुचि शुचि नौमि जन सुतावरं।।

 

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनं।

 

रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशशिनन्दनं।।

 

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूषणं।

 

आजानुभुज शर-चाप-धर,मत-जित-खरधूशनं।।

 

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-यज्ञं।

 

मम हृदय-कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं।।

 

मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर संवरो।

 

करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

 

एहि भनति गौरी असीस सानि सिय सहित हियं हरषीं अली।

 

तुलसी भवनिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चाले।।

 

 

 

।।सोरठा।।

 

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

 

मंजुल मंगल मूल बम अंग फरकन लागे।।

 

।।सियावर रामचन्द्र की जय।।

 

 

 

बजरंग बाण, बजरंग बाण

 

दोहा

 

निश्चय प्रेम विशेष ते, विनय करैं सनमान।

 

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान्॥

 

 

 

चौपाई

 

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।

 

जानके काज बिलंब न कीजै। आतुर डोरि महा सुख दीजै।

 

जैसे कूदि सिन्धु महीपारा। सुरसा बदन पतिबिस्तारा।

 

आगे जाय लंकिनी कथा। मारेहु लात मारी सुरलोका।

 

जय विभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।

 

बाग उजारी सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा।

 

अक्षय कुमार मारी सहारा। लूम लपेटि लंक को जरा।

 

लाह समान लंक जरि गे। जय जय धुनसि सुरपुर मह भाई।

 

अब बिलंब केहि करण स्वामी। कृपया करहु उर अंतरयामी।

 

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दुःख करहु निपात।

 

जय गिरिधर जय जय सुखसागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर।

 

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बजर की कीले।

 

गदा बज्र लै बैरिहि मारो। महाराज प्रभु दास उबरो।

 

ओंकार हुंकार महाबीर धावो। वज्र गदा हनु बिलम्ब न लवो।

 

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।

 

सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरु मारु जायके।

 

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा।

 

पूजा जप तप नेम आचार्या। नहिं जानत हौं दा।

 

वन उपवन मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नहीं।

 

पांय परौं कर जोरि मनावौं। यह अवसर अब केहि गोहरावौं।

 

जय अंजनी कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।

 

बदन कराल काल कुल घालक. राम सहाय सदा प्रति पालक।

 

भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मरीमार।

 

अर्थात मारु तोहिं सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।

 

जेन सुता हरिदास कहावो। ताकी सपथ देरी न लावो।

 

जय जय जय धुनि होत आकाश। सुमिरत होत दु:ख दुख नाशा।

 

चरण-शरण कर जोरि मनावौं। यह अवसर अब केहि गोहरावौं।

 

उठु-उठु चलु तोहिं राम दोहाई। पांय परौं कर जोरि मनाय।

 

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता।

 

ॐ हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराणे खल दल।

 

अपने जन को तुरत उबरो। सुमिरत होत आनंद हमारो।

 

येही बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहो फिर कौन उबरे।

 

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करण प्राण की।

 

यह बजरंग बाण जो जपाई। तेहि ते भूत प्रेत सब कंपै।

 

धूप देवता अरु जपाई सदैव। ताके तनु नहिं रहे कलेशा।

 

 

 

दोहा

 

प्रेम विशेषहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।

 

तेहि के कर्ज शुभ, सिद्ध करैं हनुमान्।।

 

 

 

हनुमान जी की आरती, हनुमान जी की आरती

 

आरती की जय हनुमान लला की।

 

दल दुष्टन कला की।

 

जाके बल से गिरिवर कांपे।

 

रोग दोष जाके निकट न हुंके।

 

अंजनि पुत्र महाबलाद।

 

सेंटन के प्रभु सदा सहाय।

 

दे बीरा पठाए।

 

लंका रिलीज़ सिया सुध ख़बर।

 

लंका सो कोट समुद्र सी खाँ।

 

जात पवनसुत बार न लै।

 

लंका जारी असुर संहारे।

 

सियारामजी के काज संवारे।

 

क्षमां मूर्च्छित पड़े सकारे।

 

आनि संजीवन प्राण उबारे।

 

पति पाताल तोरि जमकारे।

 

अहिरावण की भुजा उखाड़े।

 

वाम भुजा असुर दल मारे गए।

 

दायीं भुजा संतजन तारे।

 

सुर-नर-मुनि जन आरती उतारते।

 

जय जय जय हनुमान् उचारे।

 

कंचन था कपूर लौ छाई।

 

आरती करत अंजना माई।

 

जो हनुमानजी की आरती गावै।

 

बसी बैकुंठ परमपद पावै।

संपर्क सूत्र 8407078819

राघवपूजा

ऑनलाइन पंडित बुकिंग सेवा

#राघव पूजा: ऑनलाइन पंडित  सेवा

भारत की संस्कृति में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष प्रमुख स्थान है। जीवन के विभिन्न पर्यवेक्षणों पर हमें कई प्रकार के धार्मिक संस्कारों की आवश्यकता है। लेकिन अक्सर सही पंडित का चयन करना एक चुनौती बन जाता है। “राघव पूजा” एक कैथोलिक पंडित परामर्श सेवा है, जो विशेष रूप से पटना, अयोध्या और बैंगलोर, लखनऊ, कानपुर ईवम सहित कई अन्य स्थानों पर उपलब्ध है। यह सेवा आपको आपके एएस-पास के उपयुक्त पंडितों से जुड़ने की सुविधा प्रदान करती है जो ऑफ़लाइन पंडित परामर्श सेवा प्रदान करती है।

राघव पूजा की विशेषताएँ

1. **सुविधाजनक ऑनलाइन टूर**

राघव पूजा की वेबसाइट ( raghavpja.com ) पर आप आसानी से पंडित की सलाह ले सकते हैं। इसके लिए आपको बस कुछ आसान स्टेज का पालन करना है। यहां आप पूजा की विधि, तिथि, समय और स्थान का चयन कर सकते हैं। इसके बाद आप पंडित के अनुसार अपनी खाद का चयन कर सकते हैं।

2. **पंडितों के विशेषज्ञ**
हमारे पास अनुभवी और योग्य पंडितों की कई मान्यताएँ हैं। जो विभिन्न प्रकार के पूजा-पाठ में विशेषज्ञता रखते हैं। यदि वह गृह प्रवेश पूजा हो, विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार या कोई अन्य धार्मिक अनुष्ठान हो, तो हमारे पंडित हर पूजा की स्थापना करते हैं। पंडित संस्कृत, हिंदी और अन्य स्थानीय समुद्रों में पूजा कर सकते हैं, जिससे आप किसी भी भाषा की समस्या का सामना नहीं कर सकते। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

3. **स्थानीय पंडितों का चयन**

राघव पूजा की विधि यह है कि आप अपने आस-पास के पंडितों को चुन सकते हैं। यदि आप पाटण, अयोध्या या बेंगलुरु, बेंगलुरु, कानपुर में हैं तो आप अपनी स्थिति के अनुसार औद्योगिक पंडितों के सेक्टरों से प्राप्त कर सकते हैं। यह सुविधा आपको अपनी धार्मिक आवश्यकताओं को समय पर पूरा करने में मदद करती है। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

4. **समय का प्रबंधन**

साझीदारी में समय की कमी एक आम समस्या है। राघव पूजा आपको अपने समय के अनुसार पूजा का आयोजन करने की सुविधा प्रदान करती है। आप अपने कार्य के अनुसार दिनांक एवं समय का चयन कर सकते हैं, जिससे आपको कोई परेशानी नहीं होगी।ऑनलाइन पंडित परामर्श सेवा

5. **विविध पूजा विकल्प**

राघव पूजा के लिए विभिन्न प्रकार की पूजा सेवाएँ प्रदान की जाती हैं, जैसे:

– **गृह प्रवेश पूजा:** नए घर में प्रवेश करने से पहले जाने वाली पूजा।
– **विवाह पूजा:**विवाह उत्सव के लिए सभी आवश्यक धार्मिक अनुष्ठान।
– **मुंडन संस्कार:**बच्चे के पहले बाल कटवाने की पूजा।
– **सालगिरह पूजा:**जन्मदिन या विशेष अवसर पर जाने वाली पूजा।ऑनलाइन पंडित भक्ति सेवा

6. **सुरक्षित भुगतान विकल्प**

राघव पूजा आपकी सुरक्षा के लिए विभिन्न भुगतान विकल्प प्रदान करता है। आप ऑनलाइन ट्रांजेक्शन, क्रेडिट/डेबिट कार्ड या अन्य क्रेडिट कार्ड से सुरक्षित रूप से भुगतान कर सकते हैं। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

7. **ग्राहक सेवा**

हमारी ग्राहक सेवा टीम सदैव आपकी सहायता के लिए तैयार है। यदि आपको किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता है, तो आप हमसे सीधे संपर्क कर सकते हैं। हमारा उद्देश्य आपके अनुभव को सुखद और सरल बनाना है। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

राघव पूजा का उपयोग कैसे करें

राघव पूजा की सेवा का उपयोग करना अत्यंत सरल है। बस फॉलो करने का चरण शुरू करें:

1. **वेबसाइट पर:** [ raghavpja.com ]( http://raghavpja.com ) पर।
2. **पंडित परामर्श विकल्प चुनें:** उपलब्ध होमपेज पर परामर्श परामर्श पर क्लिक करें।
3. **आध्यात्मिक जानकारी फ़ाइल:** पूजा के प्रकार, तिथि, समय और स्थान का चयन करें।
4. **पंडित का चयन करें:** उपलब्ध पंडितों की सूची में से अपनी पसंद के अनुसार पंडित का चयन करें।
5. **भुगतान करें:** सुरक्षित भुगतान विकल्प का उपयोग करके अपनी विश्वसनीयता सुनिश्चित करें।
6. **पुष्टि प्राप्त करें:**ओके के बाद आपको एक पुष्टिकरण संदेश मिलेगा। वैदिक पंडित प्रवचन सेवा
सूत्र संपर्क 8210360545

राघव पूजा क्यों चुनें?

– **विश्वासनीयता:**राघ पूजा एक प्रतिष्ठित सेवा है, जो पिछले कई वर्षों से चली आ रही है और साझी का पालन करती है।
– **सुविधा:** आपके घर से बाहर जाने के लिए ऑनलाइन शो की आवश्यकता नहीं है।
– **अनुकूलन:** आप अपनी सामग्री के अनुसार पूजा का चयन कर सकते हैं।
– **संपूर्णता:** हमारे पंडित हर पूजा को विधि-निर्धारण करते हैं। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

## ग्राहक अनुभव

हमारे चैंबर राघव पूजा की सेवाओं के प्रति समर्पित हैं। वे कहते हैं कि हमारे पंडितों की सेवा और व्यापारियों ने उनकी पूजा के अनुभव को अद्भुत बना दिया है। “मेरे द्वारा निर्मित राघव पूजा से अपने गृह प्रवेश पूजा के लिए पंडित ने बुक किया था, और वे समय पर आये और पूरी पूजा विधि की।” – एक ग्राहक की प्रतिक्रिया। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

: …

यदि आपको पटना, अयोध्या या लखनऊ, कानपुर में किसी भी प्रकार की पूजा की आवश्यकता है, तो राघव पूजा पर जाएं और अपने लिए सही पंडित बुक करें। यह सेवा आपको धार्मिक अनुष्ठानों को सरल और अंतिम बनाने में मदद करेगी। आज ही अपनी पूजा की प्रतिज्ञा करें और अपने धार्मिक कार्यकर्ताओं को सुरक्षित करें। “राघव पूजा” के साथ आप केवल अपने आस-पास के पंडितों से जुड़ सकते हैं, बल्कि अपनी धार्मिक आस्था को भी आसानी से पूरा कर सकते हैं। ऑनलाइन पंडितऑनलाइन पंडित
ब्रोकरेज सेवा ​​​​​​सेवा कानपूर पंडितऑनलाइन पंडित ब्रोकरेज सेवा

श्रीदुर्गासप्तशती – सप्तमोऽध्यायः ॥चण्ड और मुण्डका वध

श्रीदुर्गासप्तशती – सप्तमोऽध्यायः ॥चण्ड और मुंडका वध
नियर में पंडित जी ऑनलाइन पूजन
नियर में पंडित जी ऑनलाइन पूजन

श्री स्तोत्र



॥ ध्यानम् ॥
ॐ ध्यायेयं रत्नपीठे शुक्लपतिं शृण्वतिं श्यामलाङ्गीं
न्यस्तिकाङ्घृं सरोजे शशिशक्लधरां वल्किन वादयन्तिम्।
खल्लाराबद्धमालां नियमितविलास्चोलिकां रक्तवस्त्रं
मातंगीं शखपात्रां मधुरमधुमदं चित्रकोद्भासिभालाम्॥
“ॐ” ऋषिरुवाच॥1॥
अज्ञप्तास्ते ततो दैत्यश्चण्डमुण्डपुरोगमाः।
चतुर्ग्ब्लोपेता युर्भ्युद्यतायुधाः॥2॥
ददृशुस्ते ततो देवीमीषधासं सुरक्षाम्।
सिंहस्योपरि शैलेन्द्रश्रृंगे महति कंचने॥3॥
ते दृष्ट्वा तां समदातुमुद्यं चक्रुरुद्यतः।
आकृतचापासिधरस्तथान्ये तत्समीपगाः॥4॥
ततः कोपं चकारोचैरम्बिका तनारिन प्रति।
कोपेन चास्या वदनं मशी*वर्णमभूतदा॥5॥
भ्रुकुटीकुटिलत्त्स्य ललात्फलकाद्रुतम्।
काली करालवदना विनाशक्रान्तिपासिनी॥6॥
विचित्रखट्वाङ्घधरा नरलाविभूषणा।
द्वीपचर्मपरिधान सुखामांसातिभैरवा॥7॥
अतिविस्तारवदना जिह्वल्लनभिषाना।
निमरग्नक्तन्याना नादापूरितदिङ्मुखा॥8॥
सा वेगेनाभिपतिता घटयन्ति महासुरं।
मिलिशे तत्र सुरारिणामभक्षयत् तद्बलम्॥9॥
पृष्णिग्रहाङकुशग्रहयोधाघण्टासमन्वितान्।
समदायैकहस्तेन मुखे चिक्षेप वरानान्॥10॥
तथैव योधं तुरगै रथं सारथिना सह।
निक्षिप्य वक्त्रे दशनश्चर्वयन्त्य*तिभैरवम्॥11॥
एकं जागराः केशेषु स्खलितयामथ चापराम।
पा डेनाक्रम्य चैवण्यमुर्सन्यमपोथयत्॥12॥
तैर्मुक्तानि च शस्त्राणि महास्त्राणि ततसूरैः।
मुखेन जागराः रुषा दशनैर्मीतानपि॥13॥
बलिनां तद् बलं सर्वमासुरानां दूरात्मनम्।
ममर्द्भक्षयच्चान्यान्यान्श्चताद्यत्तथा॥14॥
असीना निहताः केचित्केचित्खत्वाङगतादिताः*।
जग्मुरविनाशामसुरा दंतग्राभिहतस्तथा॥15॥
क्षणेन तद् बलं सर्वमासुरानां निपातितम्।
दृष्ट्वा चंदोऽभिदुद्रव तं कालीमतीभिषणम्॥16॥
सर्वाश्रमहाभिमैर्भिमाक्षिं तं महासुरः।
चाद्यमास चक्रैश्च मुण्डः क्षिप्तैः सहस्रशः॥17॥
तानि चक्रान्यनेकानि विष्मानि तन्मुखम्।
बभूर्यथार्कबिम्बानि मौनि घनोदरम॥18॥
ततो जहासतिरुषा भीमं भैरवनादिनी।
कालीकरालवक्त्रान्तरदुरदर्शनदशनोज्ज्वला॥19॥
उत्थाय च महासिं हं देवी चण्डमाधवत्।
गृहित्वा चास्य केशेषु शिरास्तेनासिनाचिनत्*॥20॥
अथ मुण्डोऽभ्यधावत्तां दृष्ट्वा चण्डं निपातितम्।
तमप्यपातयद्भूमौ सा खड्गाभिहतं रुषा॥21॥
हतशेषं ततः सैन्यं दृष्ट्वा चण्डं निपातितम्।
मुण्डं च सुमहावीर्यं दिशो सन्देश भयातुरम्॥22॥
शीर्षनन्दस्य काली च गृहित्वा मुण्डमेव च।
प्राह प्रचण्डत्तहासमिश्रमभ्येत्य चण्डिकाम्॥23॥
मया त्वात्रोपहृतौ चण्डमुण्डौ महापशु।
युद्धयज्ञे स्वयं शुम्भं निशुम्भं च हनिष्यसि॥24॥
ऋषिरुवाच॥25॥
त्वनितौ ततो दृष्ट्वा चण्डमुण्डौ महासुरौ।
उवाच कालीं कल्याणी ललितं चंडिका वाचः॥26॥
यस्माच्छन्दं च मुण्डं च गृहीत्व त्वमुपागता।
चामुंडेति ततो लोके साम्य देवी भविष्यसि॥ॐ॥27॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमहात्म्ये
चण्डमुण्डवधो नाम सप्तमोऽध्यायः॥7॥
उवाच 2, श्लोकः 25, एवम् 27,
एवमादितः॥439॥

संपर्क सूत्र 8407078819

 

Book Now

Skip to content