हनुमान चालीसा और आरती, बजरंग बाण श्रीं राम स्तुति ||

 

 

हनुमान चालीसा और आरती, बजरंग बाण श्री राम स्तुति || हनुमान चालीसा ||

मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है, इससे शनि जनित पीड़ा से मुक्ति मिलती है, (चाहे शनि की ढैय्या हो या साढ़े साती)। आजकल में हनुमान जी के तीर्थ में श्रद्धालु भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं साथ ही अपनी प्रिय बूरी का प्रसाद चढ़ाते हैं। बजरंगबली को संकटमोचक भी कहा जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों को सभी संकट दूर कर देते हैं। शास्त्रों और पुराणों में हनुमान जी को मंत्रमुग्ध करने के लिए मंगलवार दोपहर को हनुमान जी को मंत्रमुग्ध कर दें। आइए शुरू करें हनुमान चालीसा का पाठ –

 

दोहा :

 

श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनुं रघुबर बिमल जसु, जो ठीकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु कल मोहिं, हरहुसे बिकार।।

 

चौपाई :

 

जय हनुमान् ज्ञान गुण सागर।

जय कपीस तिहुं लोक संपर्क।।

 

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

 

महावीर बिक्रम बजरंग

कुमति निवार सुमति के संगी।।

 

कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा।।

 

हाथ बज्र औ ध्वजा बिजय।

कंधे मूंज जनेऊ साजै।

 

संरा सुवन केसरीनंद।

तेज प्रताप महा जग बंधन।।

 

विद्यावान गुणी अति चतुर।

राम काज करिबे को आतुर।।

 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लक्ष्मण सीता मन बसिया।।

 

सूक्ष्म रूप धरि सियाहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

 

भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचन्द्र के काज संवारे।।

 

लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

 

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

मम तुम भरत प्रियहि सम भाई।।

 

सहस बदन तुम्म्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ समर्पण।।

 

सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा।

नारद सारद सहित अहिसा।।

 

जम कुबेर दिगपाल जहं ते।

कबि कोबिद कहि साके स्थान ते।।

 

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

 

तुम्म्हरो मंत्र बिभीषन माना।

लंकेश्वर भए सब जग जाना।।

 

जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि फल मधुर जानु।।

 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लंबी गई अचरज नहीं।।

 

दुर्गम काज जगत के जेते।

सहज अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

 

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसेरे।।

 

सब सुख लहै विवाह सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना।

 

आपन तेज सम्हारो आपै।

त्रिलोक हांक तेन कांपै।।

 

भूत पिशाच निकट नहीं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।।

 

नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

 

संकट तेन हनुमान् सिद्धांतवै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

 

सब पर राम तपस्वी राजा।

तीन के काज सकल तुम साजा।

 

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै।।

 

चारो जुग परतापप्रिय।

परमसिद्ध जगत उजियारा।।

 

साधु-संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।।

 

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।

 

राम रसायन तुम्हारे पास।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

 

तुम्हारे भजन राम को पावै।

जन्म-जन्म के दुःख बिसारवै।।

 

अंतकाल रघुबर पुर जाई।

जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

 

और देवता चित्त न धरै।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करै।।

 

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

 

जय जय जय हनुमान् गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नईं।।

 

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई।।

 

जो यह पढ़ें हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

 

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मंह।।

 

 

दोहा

 

पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप।

 

राम लक्ष्मण सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

 

 

 

श्रीराम स्तुति, श्री राम स्तुति

 

 

 

श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भयदारुणं।

 

नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज पद कंजारुणं।।

 

कंदर्प अगणित अमित छवि, नवनील-नीरज सुंदरं।

 

पत् पीत मनहु तदित शुचि शुचि नौमि जन सुतावरं।।

 

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनं।

 

रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशशिनन्दनं।।

 

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूषणं।

 

आजानुभुज शर-चाप-धर,मत-जित-खरधूशनं।।

 

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-यज्ञं।

 

मम हृदय-कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं।।

 

मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर संवरो।

 

करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

 

एहि भनति गौरी असीस सानि सिय सहित हियं हरषीं अली।

 

तुलसी भवनिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चाले।।

 

 

 

।।सोरठा।।

 

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

 

मंजुल मंगल मूल बम अंग फरकन लागे।।

 

।।सियावर रामचन्द्र की जय।।

 

 

 

बजरंग बाण, बजरंग बाण

 

दोहा

 

निश्चय प्रेम विशेष ते, विनय करैं सनमान।

 

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान्॥

 

 

 

चौपाई

 

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।

 

जानके काज बिलंब न कीजै। आतुर डोरि महा सुख दीजै।

 

जैसे कूदि सिन्धु महीपारा। सुरसा बदन पतिबिस्तारा।

 

आगे जाय लंकिनी कथा। मारेहु लात मारी सुरलोका।

 

जय विभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।

 

बाग उजारी सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा।

 

अक्षय कुमार मारी सहारा। लूम लपेटि लंक को जरा।

 

लाह समान लंक जरि गे। जय जय धुनसि सुरपुर मह भाई।

 

अब बिलंब केहि करण स्वामी। कृपया करहु उर अंतरयामी।

 

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दुःख करहु निपात।

 

जय गिरिधर जय जय सुखसागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर।

 

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बजर की कीले।

 

गदा बज्र लै बैरिहि मारो। महाराज प्रभु दास उबरो।

 

ओंकार हुंकार महाबीर धावो। वज्र गदा हनु बिलम्ब न लवो।

 

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।

 

सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरु मारु जायके।

 

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा।

 

पूजा जप तप नेम आचार्या। नहिं जानत हौं दा।

 

वन उपवन मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नहीं।

 

पांय परौं कर जोरि मनावौं। यह अवसर अब केहि गोहरावौं।

 

जय अंजनी कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।

 

बदन कराल काल कुल घालक. राम सहाय सदा प्रति पालक।

 

भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मरीमार।

 

अर्थात मारु तोहिं सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।

 

जेन सुता हरिदास कहावो। ताकी सपथ देरी न लावो।

 

जय जय जय धुनि होत आकाश। सुमिरत होत दु:ख दुख नाशा।

 

चरण-शरण कर जोरि मनावौं। यह अवसर अब केहि गोहरावौं।

 

उठु-उठु चलु तोहिं राम दोहाई। पांय परौं कर जोरि मनाय।

 

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता।

 

ॐ हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराणे खल दल।

 

अपने जन को तुरत उबरो। सुमिरत होत आनंद हमारो।

 

येही बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहो फिर कौन उबरे।

 

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करण प्राण की।

 

यह बजरंग बाण जो जपाई। तेहि ते भूत प्रेत सब कंपै।

 

धूप देवता अरु जपाई सदैव। ताके तनु नहिं रहे कलेशा।

 

 

 

दोहा

 

प्रेम विशेषहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।

 

तेहि के कर्ज शुभ, सिद्ध करैं हनुमान्।।

 

 

 

हनुमान जी की आरती, हनुमान जी की आरती

 

आरती की जय हनुमान लला की।

 

दल दुष्टन कला की।

 

जाके बल से गिरिवर कांपे।

 

रोग दोष जाके निकट न हुंके।

 

अंजनि पुत्र महाबलाद।

 

सेंटन के प्रभु सदा सहाय।

 

दे बीरा पठाए।

 

लंका रिलीज़ सिया सुध ख़बर।

 

लंका सो कोट समुद्र सी खाँ।

 

जात पवनसुत बार न लै।

 

लंका जारी असुर संहारे।

 

सियारामजी के काज संवारे।

 

क्षमां मूर्च्छित पड़े सकारे।

 

आनि संजीवन प्राण उबारे।

 

पति पाताल तोरि जमकारे।

 

अहिरावण की भुजा उखाड़े।

 

वाम भुजा असुर दल मारे गए।

 

दायीं भुजा संतजन तारे।

 

सुर-नर-मुनि जन आरती उतारते।

 

जय जय जय हनुमान् उचारे।

 

कंचन था कपूर लौ छाई।

 

आरती करत अंजना माई।

 

जो हनुमानजी की आरती गावै।

 

बसी बैकुंठ परमपद पावै।

संपर्क सूत्र 8407078819

राघवपूजा

श्रीदुर्गासप्तशती – प्रथमोऽध्यायः

श्रीदुर्गासप्तशती - प्रथमोऽध्यायः
श्रीदुर्गासप्तशती – प्रथमोऽध्यायः

॥ श्रीदुर्गासप्तशती – प्रथमोऽध्यायः ॥

मेधा ऋषि के राजा सुरथ और समाधि पर भगवती की महिमा मधु-कैटभ-वध का प्रसंग सुनाना

॥ विनियोगः ॥

ॐ प्रथमचरित्रस्य ब्रह्मा ऋषिः,

महाकाली देवता,गायत्री छंदः,

नंदा शक्तिः, रक्तदन्तिका बीजम्, अग्निस्तत्त्वम्,

ऋग्वेदः स्वरूपम्, श्रीमहाकालीप्रीत्यर्थे प्रथमचरित्रजपे विनियोगः।

॥ध्यानम् ॥

ॐ खड्गं चक्रागदेशुचापपरिघ्नचूलं भूषणं शिरः

शङ्खं संधातें करैस्त्रिन्यानां सर्वङ्गभूषावृताम्।

नीलासमाद्युतिमास्यपाददशकं सेवे महाकालिकां

यमस्तुत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्॥

ॐ नमश्चण्डिकायै *

“ॐ ऐं” मार्कण्डेय उवाच॥1॥

सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।

निशामय तदुत्पत्तिं विस्तारद् गदतो मम॥2॥

महामायानुभावेन यथा मन्वंतराधिपः।

स बभुव महाभागः सावर्निस्तनयो रवेः॥3॥

स्वरोचिषेऽन्तरे पूर्वं चैत्रवंशसमुद्भवः।

सुरतो नाम राजाभूतमस्ते क्षितिमण्डले॥4॥

तस्य पालयतः सम्यक प्रजाः पुत्रानिवर्सन।

बभुवुः शत्रुवो भूपाः कोलाविध्वंसिनस्तदा॥5॥

तस्य तैर्भवद् युद्धमतिप्रबलदण्डिनः।

न्यूनैरपि स तैर्युद्धे कोलाविध्वंसिभिर्जितः॥6॥

ततः स्वपुरमयतो निजदेशधिपोऽभवत्।

आक्रान्तः स महाभागस्तैस्तादा प्रबलारिभिः॥7॥

अमात्यैर्बलिभिर्दुष्टैरदुर्बलस्य दूरात्मभिः।

कोशो बलं चापहृतं तत्रापि स्वपुरे ततः॥8॥

ततो मृगयाव्याजेन् हृतस्वामीः स भूपतिः।

एकाकी ह्यमारुह्य जगत् गहनं वनम्॥9॥

स तत्राश्रममद्राक्षादि द्विज्वर्यस्य मेधसः।

प्रशांतश्वापदकिरणं मुनिशिष्योपशोहितम्॥10॥

तस्थौ कंचित्स कालं च मुनिना तेन सत्कृतः।

इतश्चेत्श्च विचारंस्तस्मिन्मुनिवरश्रमे॥11॥

सोऽचिन्तयत्तदा तत्र ममत्वकृष्टचेतनः *

मत्पूर्वैः पालितं पूर्वं मया हीनं पुरं हि तत्॥12॥

मद्भृत्यैस्तैर्सद्योक्तैर्धर्मतः पल्यते न वा।

न जाने स प्रधानो मे सुरहस्ति सदामदः॥13॥

मम वैरिवशं यतः कण् भोगानुपलप्स्यते।

ये ममनुगता नित्यं प्रसादधनभोजनैः॥14॥

अनुवृत्तिं ध्रुवं तेऽद्य कुर्वन्तन्यमहिभृतम्।

असम्यग्व्यशीलैस्तैः कुर्वद्भिः सततं व्ययम्॥15॥

संचितः सोऽतिदुःखेन क्षयं कोशो गमिष्यति।

एतच्चन्याच्च सततं चिन्तयामास पितृः॥16॥

तत्र विप्राश्रमभ्याशे वैश्यमेकं ददर्श सः।

स पृष्टस्तेन कस्त्वं भो खैश्चागमनेऽत्र कः॥17॥

सशोक इव कस्मात्त्वं दुर्मना इव लक्ष्यसे।

इत्याकर्ण्य वाचस्तस्य भूपतेः प्रणयोदितम्॥18॥

प्रत्युवाच स तं वैश्यः प्रश्रयवंतो नृपम्॥19॥

वैश्य उवाच॥20॥

समाधिमर्नम वैश्योऽहमुत्पन्नो धनिनां कुले॥21॥

पुत्रदारैर्निरस्तश्च धनलोभादसादुभिः।

विकसनश्च धनैरदारैः पुत्ररायोदय मे धनम्॥22॥

वनमभ्यगतो दुःखी पितृश्चाप्तबन्धुभिः।

सोऽहं न वेदमि पुत्राणां कुशलकुशलतामिकम्॥23॥

प्रवृत्तिं स्वजनानां च दारानां चात्र संस्थितः।

किं नु तेषां गृहे क्षेमक्षेमं किं नु संप्रतम्॥24॥

कथं ते किं नु सद्वृत्ता दुर्वृत्ताः किं नु मे सुताः॥25॥

राजोवाच॥२६॥

यैर्निरस्तो भवनल्लुब्धैः पुत्रदारादिभिरधनैः॥27॥

तेषु किं भवतः स्नेहमनुबधनाति मानसं॥28॥

वैश्य उवाच॥29॥

एवमेतद्यथा प्राह भवनस्मद्गतं वाचः॥30॥

किं करोमि न बधनाति मम नितुरतां मनः।

यैः संत्यज्य पितृस्नेहं धनलुब्धैर्निराकृतः॥31॥

पतिस्वजनहर्दं च हरदि तेश्वेव मे मनः।

किमेतन्नभिजानामि जन्नपि महामते॥32॥

यत्प्रेमप्रवणं चित्तं विगुणेष्वपि बंधुषु।

तेषां कृते मे निश्वासो दुर्मनस्यं च जायते॥33॥

करोमि किं यन्न मनस्तेष्वप्रीतिषु नितुरम्॥34॥

मार्कण्डेय उवाच॥35॥श्रीदुर्गासप्तशती – प्रथमोऽध्यायः

तत्सौ सहितौ विप्र तं मुनिं समुपस्थितौ॥36॥

समाधिमर्नम वैश्योऽसौ स च पार्टिसत्तमः।

कृत्वा तु तो यथान्याय यथार्हं तेन संविदम्॥37॥

उपविष्टौ कथाः कश्चिच्चक्रतुर्वैश्यपार्थिवौ॥38॥

राजोवाच॥३९॥श्रीदुर्गासप्तशती – प्रथमोऽध्यायः

भगवानस्त्वमहं प्रष्टुमिच्छम्येकं वदस्व तत्॥40॥

दुःखाय यन्मे मनसः स्वचित्तयत्तं विना।

ममत्वं गतराज्यस्य राज्याङ्गेश्वखिलेश्वपि॥41॥

जानतोऽपि यथाज्ञस्य किमेतनमुनिसत्तम।

अयं च निकृतः *  पुत्रैर्दार्भृत्यैस्तोऽज्झितः॥42॥

स्वजनेन च संत्यक्तस्तेषु हार्डि तथाप्यति।

एवमेष तथाहं च द्वावप्यन्तदुःखितौ॥43॥

दृष्टदोषेऽपि विषये ममत्वकृष्टमानौ।

तत्किमेतनमहाभाग *  यनमोहो ज्ञानिनोरपि॥44॥

ममास्य च भवत्येषा विवेकानन्दस्य मूढ़ता॥45॥

ऋषिरुवाच॥46॥

ज्ञानमस्ति सर्वस्य जन्तोरविषयगोचरे॥47॥

विषयश्च *  महाभागयति *  चैवं पृथक् पृथक्।

दिवान्धाः प्राणिनः केचिद्रात्रावन्धस्तथापरे॥48॥

केचिद्दिवा तथा रात्रिरौ प्राणिन्स्तुल्यदृष्टयः।

ज्ञानिनो मनुजाः सत्यं किं *  तु ते न हि केवलम्॥49॥

यतो हि ज्ञानिनः सर्वे पशुपक्षिमृगदयः।

ज्ञानं च तन्मनुष्याणां यत्तेषां मृगपक्षिनाम्॥50॥

मनुष्याणां च यत्तेषां तुल्यमान्यत्तोभ्योः।

ज्ञानेऽपि सति पश्येतान् पत्ङ्गाञ्चवचञ्छुषु॥51॥

कण्मोक्षादृतान्मोहात्पीद्यमानपि क्षुधा।

मानुषा मनुजव्याघ्र सबिलाषाः सुतान् प्रति॥52॥

लोभात्प्रत्युपकाराय नन्वेता * न किं न पश्यसि।

तथापि ममतावरत्ते मोहगर्ते निपातिताः॥53॥

महामायाप्रभावेण विश्वस्थितिकारिता *

तन्नात्र विस्मयः कैरो योगनिद्रा जगत्पतेः॥54॥

महामाया हरेश्चैषा *  तया सम्मोह्यते जगत्।

ज्ञानिनामपि चेतनसि देवी भगवती हि सा॥55॥

बलादकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।

तया विशृज्यते विश्वं जगेतच्चराचरम्॥56॥

सैशा प्रसन्ना वरदा नृणां भवति मुक्तये।

सा विद्या परमा मुक्तेर्हेतुभूता सनातनी॥57॥

संसारबन्धहेतुश्च सैव सर्वेश्वरेश्वरी॥58॥

राजोवाच॥५९॥

भगवान का हि सा देवी महामायेति यं भवन्॥60॥

ब्रवीति कथमुत्पन्ना सा कर्मस्याश्च *  किं द्विज।

यत्प्रभावा *  च सा देवी यत्स्वरूपा यदुद्भवा॥61॥

तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि त्वत्तो ब्रह्मविद्यां वर॥62॥

ऋषिरुवाच॥63॥

नित्यैव स जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिदं ततम्॥64॥

तथापि तत्समुत्पत्तिर्बहुधा श्रूयतां मम।

देवानां कार्यसिद्ध्यर्थमाविर्भवति स यदा॥65॥

उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते।

योगनिद्रां यदा विष्णुर्जगतयेकर्णविकृते॥66॥

अस्तिर्य शेमभजत्कल्पन्ते भगवान प्रभु:।

तदा दवावसुरौ घोरौ मधुकैटभौ॥67॥

विष्णुकर्णमलोद्भूतो हन्तुं ब्राह्मणमुद्यतौ।

स नाइकमले विष्णोः स्थितो ब्रह्मा प्रजापतिः॥68॥

दृष्ट्वा तवसुरौ चोग्रौ प्रसुप्तं च जनार्दनम्।

तुष्टाव योगनिद्रां तामेकाग्रहहृदयस्थितः॥69॥

विबोधनार्थाय हरेर्हरिनेत्रकृतालयम् *

विश्वेश्वरीं जगधात्रिं स्थितिसंहारकारिणीम्॥70॥

निद्रां भगवतीं विष्णोर्तुलां तेजसः प्रभुः॥71॥

ब्रह्ममोवाच॥72॥

त्वं स्वाहा त्वं स्वधां त्वं हि षट्कारःस्वरात्मिका॥73॥

सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिता।

अर्धमात्रास्थिता नित्या यानुच्चराय विशेषतः॥74॥

त्वमेव सामी *  सरिया त्वं देवी जननी परा।

त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत्सृज्यते जगत्॥75॥

त्वयैत्पल्यते देवी त्वमत्स्यन्ते च सर्वदा।

विश्रष्टौ सृष्टिरूपा त्वं स्थितिरूपा च पालने॥76॥

तथा संहृतिरूपान्ते जगतोऽस्य जगन्मये।

महाविद्या महामाया महामेधा महास्मृतिः॥77॥

महामोहा च भवति महादेवी महासूरि *

प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी॥78॥

कालरात्रिरामहरिरात्रिर्मोहरात्रिश्च दारुणा।

त्वं श्रीस्त्वमीश्वरी त्वं हृस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा॥79॥

लज्जा पुष्टिस्तथा तुष्टिस्त्वं शांतिः क्षण्तिरेव च।

खड्गिनी शूलिनी घोरा गादिनी चक्रिणी तथा॥80॥

शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा।

सौम्या सौम्यतरशेषसौमयेभ्यस्त्वतिसुन्दरी॥81॥

परापराणां परमा त्वमेव भगवानि।

यच्च किंचित्क्वचिदवस्तु सदसद्वखिलात्मिके॥82॥

तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तुयसे तदा *

यया त्वया जगत्श्रष्टा जगत्पत्यति *  यो जगत्॥83॥

सोऽपि निद्रावशं नीतः कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः।

विष्णुः शरीरगृहमहमीशान एव च॥84॥

कारितास्ते यतोऽतस्त्वं कः स्तोतुं शक्तिमन् भवेत्।

सा त्वमित्थं प्रभावैः स्वैरुदारैर्देवी संस्तुता॥85॥

मोहयैतौ दुरादर्शवसुरौ मधुकैटभौ।

प्रबोधं च जगत्स्वामी नियतामच्युतो लघु॥86॥

बोधश्च क्रियतमस्य हन्तुमेतौ महासुरौ॥87॥

ऋषिरुवाच॥88॥

एवं स्तुता तदा देवी तामसी तत्र वेधसा॥89॥

विष्णोः प्रबोधनार्थाय निहंतुं मधुकैटभौ।

नेत्रास्यानसिकाबाहुहृदयेभ्यस्तथोरसः॥90॥

निर्गम्य दर्शने तस्थौ ब्रह्मणोऽव्यक्तजन्मनः।

उत्तस्थौ च जगन्नाथस्तया मुक्तो जनार्दनः॥91॥

एकार्णवेऽहिशयनात्ततः स ददृशे च तो।

मधुकैटभो दूरात्मानावतिवीर्यपराक्रमौ॥92॥

क्रोधक्तेक्षणावत्तुं *  ब्राह्मणं जनितोद्यमौ।

समुत्थाय तस्ताभ्यां युयुद्धे भगवान हरिः॥93॥

पञ्चवर्षसहस्राणी बहुप्रहरणो विभुः।

तावप्यतिबलोन्मत्तौ महामायाविमोहितौ॥94॥

उक्तवन्तौ वरोऽस्मत्तो व्रियतमिति केशवम्॥95॥

भगवान श्रीउवाच॥96॥

भवेतामाद्य मे तुष्टौ मम वध्यावुभावपि॥97॥

किमन्येन वरेणात्र एतवधि वृतं मम * ॥98॥

ऋषिरुवाच॥99॥

वाञ्चिताभ्यमिति तदा सर्वमापोमयं जगत्॥100॥

विलोक्य ताभ्यां गदितो भगवान कमलेक्षणः *

अवं जहि न यत्रोर्वी सलिलेन परिप्लुता॥101॥

ऋषिरुवाच॥102॥

तत्थेत्युक्त्वा भगवता शङ्खचक्रगदाभृता।

कृत्वा चक्रेण वै छिन्ने जघने शिरसी तयोः॥103॥

एवमेषा समुत्पन्न ब्राह्मण संस्तुता स्वयंम्।

प्रभावस्य देव्यस्तु भूयः शृणु वदामि ते॥ ऐं ॐ॥104॥

॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वंतरे देवीमहात्म्ये
मधुकैटभवधो नाम प्रथमोऽध्यायः॥1॥
उवाच 14, अर्धश्लोकः 24, श्लोकः 66,
एवमादितः॥104॥
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पटना में पंडित बुक करें

  • पटना की महत्वपूर्ण आबादी  आबादी पटना में पंडित बुक करें है जो विभिन्न अवसरों पर पूजा पाठ करती है जब भी वहां करवाते रहते हैं और यह बहुत ही धार्मिक कार्य है। हिंदू धर्म में सभी देवी देवताओं की पूजा के लिए नियम और अनुष्ठान निर्धारित हैं और इसके लिए आपके लिए एक पंडित की आवश्यकता होती है। आपके कार्य के पूजन के लिए एक ब्राह्मण धर्म के अनुसार कोई आसान काम नहीं होता है लेकिन अब आप लोग चिंता मत करें राघव पूजा आपके लिए यह सब आसान बनाने के लिए ऑफ़लाइन पंडित परामर्श सुविधा प्लेटफ़ॉर्म आया है जो आपको श्रेष्ठ और पंडित की मदद लेने में मदद करेगा ।। राघव पूजा एक पूजा सेवा ढांचे का ढांचा है जो 400 से अधिक श्रेष्ठ एवं विश्वसनीय ब्राह्मणों से जुड़ा हुआ है पूजा घर ज्योतिष आदि सेवाओं के लिए पंडित प्रदान करता है

**राघव पूजा पटना में परिजन-स्थान पर सेवा देते हैं**

  1. राघव पूजा पश्चिम एशिया में आनंदपुर, बांकीपुर, अनीसाबाद, बेवर जेल, बुद्धा कॉलोनी, दीघा घाट, बेरीबाग, गांधी मैदान, केसरी नगर, काजपुरा, स्टेप कुआं, कुरथौल, लोधीपुर, लोहिया नगर, मछुआ टोली, दानापुर, ना सिटी, फतुहा, 90 फीट 80 फीट, मीठा पर मलाही, पकरी रोड, पुराना जनकपुर, पाटलिपुत्र कॉलोनी, हनुमान नगर राजा बाजार राजपुर राज भवन शास्त्री नगर मथुरा कॉलोनी विभिन्न स्थानों में अपनी सेवा प्रदान करते हैंपटना में पंडित बुक करें

**पटना में पंडित जी द्वारा दी जाने वाली धर्मनिरपेक्षता**

गृह प्रवेश पूजा

सत्यनारायण पूजा

महागणपति पूजा घर

जन्म संस्कार

रुद्राभिषेक पूजा

कार्यालयपूजा

गंड मूल शांति पूजा

विवाह समारोह

महामृत्युंजय जप

1 गृह प्रवेश पूजन हिंदू धर्म में जब कोई नया घर बनाता है तब सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है। घर में प्रवेश करा रहे हैं आप सुख शांति और अपना आशीर्वाद बनाए रखें गृह प्रवेश पूजन के लिए हम आपको गृह प्रवेश पूजन के लिए श्रेष्ठ एवं उत्तम पंडित प्रदान करते हैं।

2 सत्यनारायण पूजा जो भगवान विष्णु के एक स्वरूप में प्रचलित हैं, सभी भक्त अपनी कामना के अनुसार अखंड श्रद्धा और विश्वास के साथ श्री सत्यनारायण व्रत की कथा करते हैं, जिससे उनके जीवन में चल रही सामग्री का पालन किया जाता है। तीर्थ करणी परिमाण से वर्न की मदद मिल जाती है और उन्हें तीर्थ से मुक्ति मिल जाती है। हम आपको सत्यनारायण कथा व्रत के लिए एवं उपयुक्त श्रेष्ठ ब्राह्मण ऑफर करेंगे सेवा का अवसर विशेष रूप से राघव पूजा के लिए

3 महा गणपति घर एवं पूजा

गणपति पूजा और अनुष्ठान अनुष्ठान भगवान गणपति की अलौकिक शक्तियों का अनुभव करते हैं यह उनका आशीर्वाद है दिव्या कृपा करने के लिए गणपति पूजा से आपके जीवन में जो भी कठिन चल रहा है वह लगभग समाप्त हो चुका है और गणपति भगवान में नया कार्य करता है शकुंत प्राप्त करें और भगवान गणपति से प्रार्थना करने से बढ़ावा दें। हम आपको पटना में गणपति पूजन के लिए श्रेष्ठ एवं उपयुक्त पंडित प्रदान करेंगे।

4 रुद्र अभिषेक पूजा में हम भगवान रुद्र अर्थात भगवान शंकर के अभिषेक करते हैं। यह रुद्राभिषेक पूजन भगवान शंकर को दूध से स्नान कराते हैं। आपकी हर इच्छा के अनुसार अभिषेक होता है, लेकिन अलग-अलग तरह से रुद्र अभिषेक की पूजा की जाती है। मंत्रो के द्वारा भगवान शिव की पूजा की जाती है और रुद्र अभिषेक के बाद भगवान शंकर का अभिषेक किया जाता है। इस आश्रम में भगवान शिव की पूजा करने के लिए भगवान को प्रसन्न किया जाता है और शिक्षा के लिए आभूषण दिए जाते हैं और धन संपत्ति या कार्य बोझ बड़ा होता है। बहुत से रुद्राभिषेक भी हैं हम आपको पटना में रुद्राभिषेक के लिए श्रेष्ठ एवं उत्तम पंडित प्रदान करेंगे

5 किसी भी कार्यालय या कार्य स्थान में प्रवेश करने से पहले पूजा की जाती है इस पूजा की सहायता से कार्यालय की सभी हानिकारक ऊर्जा नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है और इस पूजा में नवग्रह पूजा गणेश पूजा लक्ष्मी के सभी भाग होते हैं और इस पूजन को करने से सभी स्टेट्स समाप्त हो जाते हैं और व्यापार में धन की सफलता प्राप्त होती है इसलिए हम आपको पटना में श्रेष्ठ और उत्तम पंडित प्रदान करेंगे

6 विवाह पूजन जिन व्यक्तियों के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं उनमें से एक है कलयुग में विशेष रूप से संबंधित विवाह समस्याएँ बनी हुई हैं और कई कर्मों से विवाह में बड़ा होता है मंगल दोष के कारण जिन्हें मांगलिक कहा जाता है इस कारण से भी विवाह में दर्शन के लिए हम आपको बड़े की निवृत्ति के लिए वरिष्ठ पंडित और अनुभवी पंडित प्रदान करेंगे

7 गंडमूल शांति पूजा जब बच्चा जेष्ठ माघ स्लेसा रेवती अश्विनी या मूल नक्षत्रों में जन्म लेता है तो ब्राह्मण यह सलाह देते हैं कि नक्षत्र संकट दूर करने वाले हैं और यह गंडमूल नक्षत्र माने जाते हैं हर नक्षत्र का अलग-अलग अपना एक स्वभाव होता है जब बच्चा इन होता है नक्षत्रों में जन्म होता है तो गंड मूल में होता है माता-पिता को शांति, ऐसे करना चाहिए बच्चों का जन्म दिनांक 27वें दिन में होता है पूजन इस नक्षत्र में किया जाता है पूजन जिस नक्षत्र में बच्चे का जन्म होता है उपाय शांति पूजन के बाद माता-पिता इसका लाभ लेते हैं हम आपको पटना में श्रेष्ठ एवं उत्तम पंडित प्रदान करेंगे

**राघव पूजा के साथ पटना में पंडित बुक कैसे करें**

राघ पूजा.कॉम हमारी वेबसाइट पर साइन अप करने के लिए फॉर्म भरें और फॉर्म भरने के बाद नोटिफिकेशन हमारे पास आएं और हमारी टीम आपसे संपर्क करें हम 400 से अधिक ब्राह्मण टीम में शामिल हैं। हम पटना के विभिन्न संस्थानों में पूजा और ब्राह्मण प्रस्ताव देते हैं। आपका प्रचारक कंसफर्म के बाद 30% अग्रिम भुगतान करें। आप हमारे स्टूडियो नंबर जो 821 0360545 है या 84070 7819 है। इस पर आप हमारे संगठन हमारी टीम से संपर्क करें। चिंता मुक्त पूजन का आनंद भाग

**निष्कर्ष**

राघव पूजा के साथ पंडित बुक करना अब बहुत आसान है, आपके लिए विशेष रूप से समस्या निवारण की आवश्यकता नहीं है और यदि आप इसके अलावा अन्य सामग्री पढ़ने में परेशानी हो रही है तो आप हमारे पंडित जी से कह दे ओवैस पोयम पूजन सामग्री निर्धारण करके आपके पूजन के दिन आपके पास पहुंचें और आप पूजन सामग्री और दक्षिण ब्राह्मण दक्षिण दोनों में साथ दे दे पटना में पंडित बुक करें हो सकते हैं 

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पंडित बुकिंग की सुविधा

: पंडित प्रवचन की सुविधा

भारत में धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। हमारे जीवन में जब भी कोई महत्वपूर्ण अवसर या पर्व आता है तो हम अपने एकल के साथ सामूहिक पूजा करने का संकल्प लेते हैं। लेकिन कभी-कभी पूजा के लिए उपयुक्त पंडित की तलाश करना कठिन काम बन जाता है। इसी समस्या के समाधान के लिए राघवपूजा डॉट कॉम की कंपनी उपलब्ध है। इस लेख में हम राघवपूजा डॉट कॉम के माध्यम से पंडित परामर्श की प्रक्रिया, इसके लाभ और व्यवसाय के बारे में चर्चा करेंगे।

राघवपूजा डॉट कॉम का परिचय

पंडित शिक्षण सुविधा
पंडित शिक्षण सुविधा

राघवपूजा डॉट कॉम एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो विभिन्न शहरों में पंडितों की सेवा के लिए उपलब्ध है। यदि आप पटना, अयोध्या, या बैंगलोर में दाखिला लेते हैं, तो यहां पंडित बुक करने की सुविधा उपलब्ध है। इस टूल के माध्यम से, आप अपने समय और सुविधा के अनुसार उपयुक्त और अनुभवी पंडितों से पूजा स्थल आसानी से बुक कर सकते हैं।

#### पंडित प्रवचन की प्रक्रिया

पंडित बुक करने की प्रक्रिया बेहद सरल और सरल है। राघवपूजा डॉट कॉम विक्रेता पर, आप निम्नलिखित चरण का पालन कर सकते हैं:

1. **पंजीकरण:** सबसे पहले, आपको वेबसाइट पर पंजीकरण करना होगा। इसके लिए आप अपना ईमेल पता और मोबाइल नंबर का उपयोग कर सकते हैं।

2. **पंडित का चयन:** पंजीकरण के बाद, आपको विभिन्न पंडितों की सूची दिखाई देगी। आप उनकी विशेषज्ञता, अनुभव और शिक्षा के आधार पर पंडित का चयन कर सकते हैं।

3. **तारीख और समय निर्धारित करें:** चुने गए पंडित के साथ अपनी पूजा की तारीख और समय निर्धारित करें।

4. **भुगतान:** शो की पुष्टि करने के लिए आपको भुगतान करना होगा। राघवपूजा डॉट कॉम विभिन्न वेबसाइट्स भुगतान विकल्प की सुविधा प्रदान करता है।

5. **पंडित का आगमन:** निर्धारित तिथि और समय पंडित आपके स्थान पर दर्शन और पूजा का आयोजन करेंगे।

#### राघवपूजा डॉट कॉम का लाभ

1. **सुविधा:** घर बैठे पंडित बुक करने की सुविधा मिलने से आपको भटकने की आवश्यकता नहीं है।

2. **अनुभवी पंडित:** राघवपूजा डॉट कॉम पर सभी पंडित विशेषज्ञ और उपकरण उपलब्ध हैं, जो विभिन्न पूजा-पाठ के विशेषज्ञ विशेषज्ञ हैं।

3. **समय की बचत:** ऑनलाइन माध्यम से आपको समय की बचत होती है, जिससे आप अन्य कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

4. **समीक्षाएं और रेटिंग:** आप पंडितों की समीक्षाओं और रेटिंग्स से सही पंडित का चयन कर सकते हैं, जिससे आपकी पूजा का अनुभव बेहतर हो सकता है।

5. **विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान:**राघपूजा डॉट कॉम विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों की सेवा प्रदान करता है, जैसे कि निवास, जन्मदिन पूजा, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, आदि। पंडित शिक्षण सुविधा

#### पूजा की विभिन्न विधियाँ

भारत में पूजा की विभिन्न विधियाँ हैं, जिन पर विभिन्न अवसरों और धार्मिक पूजा-अर्चना पर रोक लगाई जाती है। राघव पूजा विधि डॉट कॉम पर आपके लिए निम्नलिखित प्रमुख पूजा सामग्री उपलब्ध हैं:

1. **गृह प्रवेश पूजा:** नए गृह प्रवेश के समय यह पूजा विशेष महत्वपूर्ण होती है। इस पूजा से घर में सुख, शांति और समृद्धि की कामना की जाती है।

2. **नामकरण संस्कार:**बच्चों के नामकरण के लिए विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। यह संस्कार बच्चे के जीवन में खुशियों का आगमन होता है।

3. **हवन:** एक पवित्र अग्नि में आहुति देने की विधि है, जो किसी भी पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

4. **जन्मदिन पूजा:**जन्मदिन पर विशेष पूजा का आयोजन करके व्यक्ति के जीवन में शुभता और समृद्धि की कामना की जाती है।

5. **संकट मोचन हनुमान चालीसा:** हनुमान चालीसा का पाठ संकटों से मुक्ति के लिए किया जाता है।

#### विशेष अवसरों पर पूजा का महत्व

विभिन्न त्योहारों और विशेष अवसरों पर पूजा का महत्व बहुत अधिक है। जैसे कि:

– **दिवाली:** इस पर्व पर लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है। लोग घर में लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं ताकि घर में धन और समृद्धि का आगमन हो।

– **नववर्ष:** नववर्ष की शुरुआत पर लोग अपने परिवार के साथ मिलकर पूजा करते हैं ताकि नए साल में शुभता और सफलता मिले।

– **मकर संक्रांति:** इस पर्व पर सूर्य देव की पूजा की जाती है, जिससे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। पंडित शिक्षण सुविधा

#### निष्कर्ष इंजीनियर पंडित जी पटना में 

राघवपूजा डॉट कॉम के पंडित सलाहकार की एक आदर्श और प्रभावशाली प्रक्रिया है, जो आपके धार्मिक अनुष्ठानों को आसान बनाती है। विभिन्न तीर्थस्थलों में पंडितों के दर्शन, उनके विशेषज्ञता और अनुभव के आधार पर चुनाव की सुविधा, और समय की बचत जैसे लाभ इस सेवा को विशेष रूप से प्रभावित किया जाता है। इस डीलरशिप के माध्यम से आप अपने धार्मिक सिद्धांतों और साध्य को सरलता से जीवित रख सकते हैं।

यदि आप भी धार्मिक अनुष्ठानों को सरलता से करना चाहते हैं, तो आज ही राघवपूजा डॉट कॉम पर पंडित बुक करें और अपने जीवन को आध्यात्मिकता से परिपूर्ण करें। पंडित शिक्षण सुविधा

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नियर में पंडित जी पटना 

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1  ***परिचय***

राघव पूजा एक ऑनलाइन प्लेटफार्म है जो आपको पंडित  सेवा प्रदान करता है।राघवपूजा अयोध्या की संस्था के द्वारा संचालित किया गया है।  जो विगत 10 वर्षो से सेवा प्रदान करते आ रहा है। राघवपूजा टीम में जितने ब्राह्मण है वो सारे उच्च कोटि के विद्या अध्यन किए हुवे है। सारे ब्राह्मण का परीक्षण के बाद ही राघव पूजा अपनी टीम में शामिल करता है। राघव पूजा आपके अपने शहर में पूजन प्रदान करता है। अगर आप ऑनलाइन पंडित जी को ढूंढ रहे हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं। राघवपूजा योग्य और विश्वसनीय पंडित प्रदान करता है। राघवपूजा सभी प्रकार का कर्म जैसे नामकरण संस्कार से लेकर श्राद्ध कर्म तक सभी प्रकार के कर्म का पंडित प्रदान करता है नियर में पंडित जी पटना

2 **हमारी सेवाएँ**

नियर में पंडित जी पटना
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1. **ऑनलाइन पंडित बुकिंग**: राघवपूजा.कॉम की वेबसाइट पर जाकर आप आसानी से अपने पसंदीदा पंडित को बुक कर सकते हैं। आपको बस अपना नाम ,फोन नंबर,अपना स्थान,अपनी पूजा का विवरण देना है  और हमारी टीम आपके लिए उपयुक्त पंडित की व्यवस्था करेगी।नियर में पंडित जी पटना

2. **विशेष पूजा अनुष्ठान**: हम विभिन्न प्रकार की पूजा और अनुष्ठान करवाते हैं, जैसे कि घर की गृह प्रवेश पूजा, विवाह पूजा, जन्मोत्सव पूजा,  सत्यनारायण पूजा ,दुर्गा पूजन ,ग्रह पूजन,जप,और अन्य धार्मिक अनुष्ठान। आप अपनी आवश्यकताओं के अनुसार पूजा का चयन कर सकते हैं।नियर में पंडित जी पटना

3. **उच्च गुणवत्ता वाले पंडित**: हमारे पंडित वेद और शास्त्रों में प्रशिक्षित और विश्वसनीय है। वे अपनी विशेषज्ञता और अनुभव के साथ आपकी पूजा को संपन्न करते हैं, जिससे आपको एक आध्यात्मिक अनुभव और आनन्द मिलता है।नियर में पंडित जी पटना

4. **सुलभता**: हमारे प्लेटफार्म का उपयोग करना बहुत आसान है। आप अपनी सुविधानुसार समय और स्थान चुन सकते हैं। नियर में पंडित जी पटना

3**कैसे बुक करें?**

. **वेबसाइट पर जाएँ**: राघव पूजा की वेबसाइट (raghavpuja.com) पर जाएँ।

2. **सेवा का चयन करें**: पूजा का प्रकार चयन करें।

3. **सूचना भरें**: अपनी संपर्क जानकारी और अन्य आवश्यक विवरण भरें

4 **हमारा संपर्क सूत्र**8210360545

4**हमारी पहुंच**

राघव पूजा की सेवाएँ पटना ,बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे, पंजाब, दिल्ली, अयोध्या,कानपुर,सासाराम,गया, मुंबई,लखनऊ, इंदौर,और आपके हर शहर में भी उपलब्ध हैं। यहाँ के पंडित अपने ज्ञान और अनुभव के साथ आपकी धार्मिक आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं। **अयोध्या**: अयोध्या, जिसे भगवान राम की जन्मभूमि माना जाता है, यहाँ भी हम विशेष पूजा अनुष्ठान आयोजित करते हैं। आप यहाँ के पंडितों से सच्चे भक्तिभाव के साथ पूजा करवा सकते हैं।नियर में पंडित जी पटना

**बेंगलुरु**: बेंगलुरु, जो एक आधुनिक शहर है, यहाँ पर भी हमारी सेवाएँ उपलब्ध हैं। बेंगलुरु में रहने वाले भारतीय नागरिक अपनी धार्मिक मान्यताओं को बनाए रखने के लिए हमारे पंडितों की सेवाएँ ले सकते हैं।नियर में पंडित जी पटना

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5**निष्कर्ष**

राघव पूजा एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो धार्मिकता को सरल बनाता है। आप अपने व्यस्त जीवन में भी अपनी धार्मिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। ऑनलाइन पंडित बुकिंग के माध्यम से, आप अपने घर के आराम से पूजा का आयोजन कर सकते हैं। नियर में पंडित जी पटना

आपकी पूजा के लिए योग्य और अनुभवी पंडितों की टीम राघव पूजा में है, जो आपकी हर धार्मिक आवश्यकता का ख्याल रखेगी। तो अब इंतजार किस बात का? राघव पूजा से जुड़ें और अपनी पूजा का आनंद लें! नियर में पंडित जी पटना

अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर जाएँ: [raghavpuja.com](http://raghavpuja.com)

इस लेख के माध्यम से, राघव पूजा ने यह सुनिश्चित किया है कि आप सभी को एक साधारण और सुविधाजनक तरीके से धार्मिक अनुष्ठान करने का अवसर मिले। आपकी आध्यात्मिक यात्रा में हम आपके साथ हैं।  नियर में पंडित जी पटना

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#राघव पूजा: ऑनलाइन पंडित  सेवा

भारत की संस्कृति में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष प्रमुख स्थान है। जीवन के विभिन्न पर्यवेक्षणों पर हमें कई प्रकार के धार्मिक संस्कारों की आवश्यकता है। लेकिन अक्सर सही पंडित का चयन करना एक चुनौती बन जाता है। “राघव पूजा” एक कैथोलिक पंडित परामर्श सेवा है, जो विशेष रूप से पटना, अयोध्या और बैंगलोर, लखनऊ, कानपुर ईवम सहित कई अन्य स्थानों पर उपलब्ध है। यह सेवा आपको आपके एएस-पास के उपयुक्त पंडितों से जुड़ने की सुविधा प्रदान करती है जो ऑफ़लाइन पंडित परामर्श सेवा प्रदान करती है।

राघव पूजा की विशेषताएँ

1. **सुविधाजनक ऑनलाइन टूर**

राघव पूजा की वेबसाइट ( raghavpja.com ) पर आप आसानी से पंडित की सलाह ले सकते हैं। इसके लिए आपको बस कुछ आसान स्टेज का पालन करना है। यहां आप पूजा की विधि, तिथि, समय और स्थान का चयन कर सकते हैं। इसके बाद आप पंडित के अनुसार अपनी खाद का चयन कर सकते हैं।

2. **पंडितों के विशेषज्ञ**
हमारे पास अनुभवी और योग्य पंडितों की कई मान्यताएँ हैं। जो विभिन्न प्रकार के पूजा-पाठ में विशेषज्ञता रखते हैं। यदि वह गृह प्रवेश पूजा हो, विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार या कोई अन्य धार्मिक अनुष्ठान हो, तो हमारे पंडित हर पूजा की स्थापना करते हैं। पंडित संस्कृत, हिंदी और अन्य स्थानीय समुद्रों में पूजा कर सकते हैं, जिससे आप किसी भी भाषा की समस्या का सामना नहीं कर सकते। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

3. **स्थानीय पंडितों का चयन**

राघव पूजा की विधि यह है कि आप अपने आस-पास के पंडितों को चुन सकते हैं। यदि आप पाटण, अयोध्या या बेंगलुरु, बेंगलुरु, कानपुर में हैं तो आप अपनी स्थिति के अनुसार औद्योगिक पंडितों के सेक्टरों से प्राप्त कर सकते हैं। यह सुविधा आपको अपनी धार्मिक आवश्यकताओं को समय पर पूरा करने में मदद करती है। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

4. **समय का प्रबंधन**

साझीदारी में समय की कमी एक आम समस्या है। राघव पूजा आपको अपने समय के अनुसार पूजा का आयोजन करने की सुविधा प्रदान करती है। आप अपने कार्य के अनुसार दिनांक एवं समय का चयन कर सकते हैं, जिससे आपको कोई परेशानी नहीं होगी।ऑनलाइन पंडित परामर्श सेवा

5. **विविध पूजा विकल्प**

राघव पूजा के लिए विभिन्न प्रकार की पूजा सेवाएँ प्रदान की जाती हैं, जैसे:

– **गृह प्रवेश पूजा:** नए घर में प्रवेश करने से पहले जाने वाली पूजा।
– **विवाह पूजा:**विवाह उत्सव के लिए सभी आवश्यक धार्मिक अनुष्ठान।
– **मुंडन संस्कार:**बच्चे के पहले बाल कटवाने की पूजा।
– **सालगिरह पूजा:**जन्मदिन या विशेष अवसर पर जाने वाली पूजा।ऑनलाइन पंडित भक्ति सेवा

6. **सुरक्षित भुगतान विकल्प**

राघव पूजा आपकी सुरक्षा के लिए विभिन्न भुगतान विकल्प प्रदान करता है। आप ऑनलाइन ट्रांजेक्शन, क्रेडिट/डेबिट कार्ड या अन्य क्रेडिट कार्ड से सुरक्षित रूप से भुगतान कर सकते हैं। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

7. **ग्राहक सेवा**

हमारी ग्राहक सेवा टीम सदैव आपकी सहायता के लिए तैयार है। यदि आपको किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता है, तो आप हमसे सीधे संपर्क कर सकते हैं। हमारा उद्देश्य आपके अनुभव को सुखद और सरल बनाना है। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

राघव पूजा का उपयोग कैसे करें

राघव पूजा की सेवा का उपयोग करना अत्यंत सरल है। बस फॉलो करने का चरण शुरू करें:

1. **वेबसाइट पर:** [ raghavpja.com ]( http://raghavpja.com ) पर।
2. **पंडित परामर्श विकल्प चुनें:** उपलब्ध होमपेज पर परामर्श परामर्श पर क्लिक करें।
3. **आध्यात्मिक जानकारी फ़ाइल:** पूजा के प्रकार, तिथि, समय और स्थान का चयन करें।
4. **पंडित का चयन करें:** उपलब्ध पंडितों की सूची में से अपनी पसंद के अनुसार पंडित का चयन करें।
5. **भुगतान करें:** सुरक्षित भुगतान विकल्प का उपयोग करके अपनी विश्वसनीयता सुनिश्चित करें।
6. **पुष्टि प्राप्त करें:**ओके के बाद आपको एक पुष्टिकरण संदेश मिलेगा। वैदिक पंडित प्रवचन सेवा
सूत्र संपर्क 8210360545

राघव पूजा क्यों चुनें?

– **विश्वासनीयता:**राघ पूजा एक प्रतिष्ठित सेवा है, जो पिछले कई वर्षों से चली आ रही है और साझी का पालन करती है।
– **सुविधा:** आपके घर से बाहर जाने के लिए ऑनलाइन शो की आवश्यकता नहीं है।
– **अनुकूलन:** आप अपनी सामग्री के अनुसार पूजा का चयन कर सकते हैं।
– **संपूर्णता:** हमारे पंडित हर पूजा को विधि-निर्धारण करते हैं। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

## ग्राहक अनुभव

हमारे चैंबर राघव पूजा की सेवाओं के प्रति समर्पित हैं। वे कहते हैं कि हमारे पंडितों की सेवा और व्यापारियों ने उनकी पूजा के अनुभव को अद्भुत बना दिया है। “मेरे द्वारा निर्मित राघव पूजा से अपने गृह प्रवेश पूजा के लिए पंडित ने बुक किया था, और वे समय पर आये और पूरी पूजा विधि की।” – एक ग्राहक की प्रतिक्रिया। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

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यदि आपको पटना, अयोध्या या लखनऊ, कानपुर में किसी भी प्रकार की पूजा की आवश्यकता है, तो राघव पूजा पर जाएं और अपने लिए सही पंडित बुक करें। यह सेवा आपको धार्मिक अनुष्ठानों को सरल और अंतिम बनाने में मदद करेगी। आज ही अपनी पूजा की प्रतिज्ञा करें और अपने धार्मिक कार्यकर्ताओं को सुरक्षित करें। “राघव पूजा” के साथ आप केवल अपने आस-पास के पंडितों से जुड़ सकते हैं, बल्कि अपनी धार्मिक आस्था को भी आसानी से पूरा कर सकते हैं। ऑनलाइन पंडितऑनलाइन पंडित
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बेंगलुरू में उत्तर भारतीय पंडित 



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    दुर्गा *देविकवच स्तोत्र। नियर मी पंडित इन पटना 8210360545 एक शक्तिशाली संस्कृत स्तुति है, जो माँ दुर्गा को समर्पित है। इसका उद्देश्य देवी दुर्गा की कृपा और उनकी सुरक्षा प्राप्त करना है। यह स्तोत्र **मार्कंडेय पुराण** के अंतर्गत आता है और **दुर्गा सप्तशती** का एक महत्वपूर्ण भाग है। भक्त इस स्तोत्र का पाठ देवी से सुरक्षा, मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन की प्रार्थना करते हैं। देविकवाच के श्लोकों में गहरे आध्यात्म और चित्रण का समावेश है, जो भक्त के जीवन के हर सिद्धांत को सुरक्षित करने की प्रेरणा देता है।
    संरचना और महत्व

    “कवच” का अर्थ “रक्षा कवच” या “ढाल” होता है। **देविकावाच स्तोत्र** का पाठ करना मुख्य उद्देश्य एक आभासी सुरक्षा कवच का निर्माण करना है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शिक्षा से बचाव करता है। यह स्तोत्र विभिन्न देवी-देवताओं का आह्वान करके शरीर के विभिन्न अंगों और जीवन के सिद्धांतों की सुरक्षा की प्रार्थना करता है।देविकावच स्तोत्र। नियर मी पंडित इन पटना 8210360545

    इस स्तोत्र में **महाकाली**, **महालक्ष्मी**, और **सरस्वती** की तरह विभिन्न देवियों का उल्लेख है, रावण शरीर के विभिन्न अंगों की सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है। देविकवच स्तोत्र. नियर मी पंडित इन पटना 8210360545 जैसे:
    – **दुर्गा** से संपूर्ण शरीर की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है।
    – **चामुंडा** को सिर की रक्षा के लिए बुलाया जाता है।
    – **भद्रकाली** से हृदय की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है।

    इस प्रकार, यह स्तोत्र एक समग्र आध्यात्मिक साधना का प्रतीक है।

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    देवीवाच स्तोत्र का महत्व केवल इसके शाब्दिक अर्थ में है, बल्कि इसका नामकरण रूप भी है, जो ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। हर देवी किसी न किसी ब्रह्मांडीय शक्ति या सिद्धांत का प्रतीक है, और कवच इस बात का संकेत है कि माँ दुर्गा की रक्षा करने वाली और पोषण करने वाली शक्तियाँ हर पल हमारे साथ हैं।

    इस स्तोत्र का पाठ न केवल देवी की कृपा को प्राप्त करना है, बल्कि यह हमें याद है कि ब्रह्मांड में और हमारे अंदर **शक्ति** (दिव्य स्त्री शक्ति) का वास है। यह स्तोत्र हमें मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, जो हमारे जीवन में आने वाली कथा से लौटने की शक्ति प्रदान करता है। देविकवच स्तोत्र. मेरे निकट पंडित पटना 8210360545

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    1. **नाकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा**: **दैविकवच स्तोत्र** का मुख्य विषय नकारात्मक और दैविक शक्तियों से सुरक्षा है। यह स्तोत्र भौतिक शत्रुओं, बुरे सपनों और मानसिक नकारात्मकता से बचने के लिए देवी से सहायता मांगता है।

    2. **शक्ति का आह्वान**: हर श्लोक देवी की कृपा और शक्ति का आह्वान करता है। यह स्तोत्र भक्त के अंदर सोई हुई शक्ति को जगाने का साधन है, जिससे वे देवी की ऊर्जा अपने जीवन में प्रसारित कर सकते हैं।

    3. **आध्यात्मिक शक्ति**: नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त रूप से मजबूत अनुभूति होती है। शरीर के विभिन्न अंगों और आत्मा के विभिन्न सिद्धांतों की रक्षा की प्रार्थना करके, भक्त मानसिक और ध्वनि रूप से दृढ़ हो जाते हैं। देविकवच स्तोत्र. नियर मी पंडित इन पटना 8210360545

    4. **स्वास्थ्य और कल्याण**: **देविकवाच** केवल सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह मन, शरीर और आत्मा को श्रवण प्रदान करने का माध्यम है, और यह मानसिक तनाव को कम करने, ध्यान केन्द्रित करने और स्थिरता स्थिरता लाने में मदद करता है।

    ### पाठ का लाभ

    1. **मानसिक शांति**: **देविकावाच** का पाठ मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है। इसके श्लोकों का लयबद्ध उच्चारण ध्यान की स्थिति उत्पन्न करता है, जो चिंता और तनाव को कम करता है।

    2. **आध्यात्मिक आन्दोलन**: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त उच्च आध्यात्मिक आदर्शों की ओर अव्यवस्थित होते हैं। देवी की दिव्यता पर ध्यान केन्द्रित करने से धार्मिक स्थलों से मुक्ति मिलती है और भक्त का आत्मिक विकास होता है।

    3. **शारीरिक सुरक्षा**: बहुत से लोग यात्रा के दौरान या संकट के समय **देविकवच स्तोत्र** का पाठ करते हैं, ऐसा माना जाता है कि यह उन्हें सीख और दोस्ती से सीखता है।

    4. **सकारात्मक ऊर्जा**: यह स्तोत्र आसपास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जिससे शांति, सौहार्द और आध्यात्मिक रचनात्मकता का माहौल बनता है। नवरात्रि या अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर इसका पाठ करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है।

    ### निष्कर्ष

    **देविकावच स्तोत्र** केवल सुरक्षा के लिए प्रार्थना नहीं है, यह एक संविधान का स्तोत्र है, जो भक्त को यह प्रमाणित करता है कि देवी की शक्ति हमारे अंदर ही समाहित है। पवित्र श्लोकों के माध्यम से देवी का आह्वान करते समय भक्त न केवल अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं, बल्कि आध्यात्मिक दृढ़ता, दृढ़ता और कल्याण की भी कामना करते हैं। दैनिक साधना के रूप में या विशेष अवसरों पर, **देविकावाच** हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसकी शक्ति, शांति और दिव्य सुरक्षा के लिए पूजा की जाती है।

    देविकवच स्तोत्र. नियर मी पंडित इन पटना 8210360545

     

    देवी कवच

    ॐ अस्य श्रीचण्डीकवाचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः,
    चामुण्ड देवता, अङ्गान्यसोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,
    श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
    ॐ नमरामाचण्डिकायै॥
    मार्कण्डेय उवाच
    ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षकं नृणाम्।
    यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥
    ब्रह्ममोच
    अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
    देव्यस्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥2॥
    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥3॥
    पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
    सप्तमं कालरात्रिति महागौरीति चाष्टमम्॥4॥
    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
    उक्तानयेतानि नामानि ब्राह्मणैव महात्मना॥5॥
    अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रने।
    विषमे दुर्गमे चैव भयावहताः शरणं गताः॥6॥
    न तेषां जायते किंचिदशुभं ऋणसंकते।
    नापादं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥7॥
    यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषं वृद्धिः प्रजायते।
    ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तन्न संशयः॥8॥
    प्रेतसंस्था तु चामुंडा वाराहि महिषासना।
    ऐन्द्री गजसमारुधा वैष्णवी गरुडासना॥य॥
    माहे वाल्वारी वृषारूढ़ा कौमारी शिखिवाहना।
    लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥
    वाल्लेतरूपधारा देवी ई वाल्री वृषभाना।
    ब्राह्मी हंससमारुधा सर्वाभरणभूषिता॥॥
    इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
    नानाभरणशोभाद्य नानारत्नोपशोभिताः॥12॥
    दृश्यन्ते रथमारुढ़ा देव्याः क्रोधसमाकुलाः।
    शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलयुधम्॥3॥
    खेतकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
    कुंतायुधं त्रिशूलं च शारंगमायुधमुत्तमम्॥14॥
    दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभाय च।
    धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥15॥
    नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
    महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी॥16॥
    त्राहि मां देवी दुष्प्रेक्ष्ये शत्रुणां भयवर्धिनि।
    प्राच्यां रक्षतु मामैंन्द्री अग्नियैमग्निदेवता॥17॥
    दक्षिणेऽवतु वाराहि नैर्ऋत्यं खड्गधारिणी।
    प्रतिच्यां वारुणि रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥18॥
    उदिच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
    ऊर्ध्वं ब्रह्मानि मे रक्षेदहस्तद् वैष्णवी तथा॥19॥
    एवं दश दिशो रक्षेच्छमुंडा शववाहना।
    जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥20॥
    अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापिता।
    शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्धनी सस्था॥21॥
    मालाधारी ललाते च भुरुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
    त्रिनेत्र च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥22॥
    शङ्खिनि चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
    कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शंकरी॥तीस॥
    नासिकायां सुगंधा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
    अधारे चामृतकला जिह्वयां च सरस्वती॥24॥
    दन्तं रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
    घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥25॥
    कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वचनं मे सर्वमङ्गला।
    उदरायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धारी॥26॥
    नीलग्रीवा बहिःकंथे नालिकां नलकूबरी।
    स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद् बाहु मे वज्रधारिणी॥27॥
    हस्तयोर्दन्दिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलिशु च।
    नखञ्छूले वल्रि रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुले वल्रि॥28॥
    स्तनौ रक्षेनमहादेवी मनः शोकविनाशिनी।
    हृदये ललिता देवी उद्रे शूलधारिणी॥29॥
    नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्ये वल्रि तथा।
    पूतना कामिका मेढ्रं गुडे महिषावाहिनी ॥30॥
    कात्यां भगवती रक्षेज्जनुनि विन्ध्यवासिनी।
    जङ्घे महाबाला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥31॥
    गुल्फ़योर्नासिंघी च पादपृष्ठे तु तैजसी।
    पादङ्गुलिषु श्री रक्षेत्पादधस्तलवासिनी॥32॥
    नखां दंस्त्रकराली च केसांशिश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
    रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागी वल्वारी तथा॥33॥
    रक्तमज्जवसामांसंन्यास्थिमेदनसि पार्वती।
    अन्तराणि कालरात्रिकल्प च पित्तं च मुकुटे वल्वारी॥344॥
    पद्मावती पद्मकोशे कफे चूड़ामणिस्तथा।
    वर्णो नखज्वलमभेदद्य सर्वसंधिषु॥35॥
    शुक्रं ब्रह्मानि मे रक्षेछायां छत्रे वल्रि तथा।
    उभयं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥
    प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
    वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥
    रसे रूपे च गंधे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
    सत्त्वं रजस्तमश्यैव रक्षेननारायणी सदा॥38॥
    अउ रक्षतु वाराहि धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
    यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥
    गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशुन्मे रक्ष चण्डिके।
    पुत्रान् रक्षेनमहालक्ष्मीर्भार्यं रक्षतु भैरी॥चार्टी॥
    पंथानं सुपथ रक्षेनमार्गं क्षेमकरी तथा।
    राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजय सर्वतः स्थिता॥41॥
    रक्षाहीनं तु यत्स्थानं नैवेद्यं कवचेन तु।
    तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनि॥42॥
    पदमेकं न गच्छेत्तु यदिच्छेच्छुभमात्मनः।
    कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥43॥
    तत्र तत्रार्थलाभाश्च विजयः सार्वकामिकः।
    यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निष्चितम्।
    परमैर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥444॥
    निर्भयो जायते मर्त्यःबातेश्वपराजितः।
    त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृत्तः पुमान्॥45॥
    इदं तु देव्यः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
    यः पत्थेत्प्रयतो नित्यं त्रिसंध्यं श्रेयान्वितः॥46॥
    दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
    जीवेद वर्षशतं सागरमपमृत्युविवर्जितः। 47॥
    नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लुटविस्फोटकादयः।
    स्थावरं जङगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विशम्॥48॥
    अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
    भूचराः खेचराश्यैव जलजारामाचोपदेशिकाः॥49॥
    सहजा कुलजा मेल मेलकिनी शाकिनी तथा।
    अन्तरिक्षचर घोरा डाकिन्यमश्च महाबलः॥50॥
    ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगंधर्वराक्षसः।
    ब्रह्मरक्षास्वेतालाः कूष्माण्डा भैरवदायः ॥51॥
    नश्यन्ति दर्शनात्तस्य क्वाचे हृदि संस्थिते।
    मनोनातिरभवेद् राज्यस्तेजो भगवन्करं परम॥52॥
    यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमंडितभूतले।
    जपेत्सप्तशतिं चण्डिं कृत्वा तु कवचं पुरा॥53॥
    यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
    तावत्तिष्ठति मेदिन्यं संततिः पुत्रपौत्रिकि॥5
    देहन्ते परमं स्थानं यत्सुरैपि दुर्लभम्।
    प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥
    लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥56॥
    इति देव्यः क्वाचं संपूर्णम्। 

    देविकवच स्तोत्र. नियर मी पंडित इन पटना 8210360545

    नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

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    *नागशान्तिस्तोत्रम्** नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna एक प्रमुख वैदिक स्तोत्र है, जिसका पाठ नागदोषों एवं सर्प भय से मुक्ति के लिए उपलब्ध है। यह स्तोत्र विशेष रूप से लोगों के लिए माना जाता है कि जो लोग कालसर्प योग, नाग दोष या सर्पदंश के भय से पीड़ित होते हैं। आयो विवरण से जानें कि इसका पाठ करने के क्या फायदे हैं और यह महत्वपूर्ण क्या है।

    नागशांतिस्तोत्रम् का महत्व:नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna
    नागशांतिस्तोत्रम् भगवान शिव और नागों की शांति के लिए एक स्तोत्र रचा गया है। भारत में सर्पों को दिव्य शक्ति के रूप में माना जाता है। उन्हें प्रकृति के संरक्षक और शिव के आभूषण के रूप में देखा जाता है। नाग पंचमी की तरह त्योहारों में सर्पों की पूजा की जाती है, और उनकी प्रति साध्य और श्रद्धा के भाव मनाए जाते हैं। नागों को महादेव के गले की शोभा के रूप में जाना जाता है, और नागों से जुड़ी कई धार्मिक सिद्धांत प्रचलित हैं।

    ### नागशान्तिस्तोत्रम् का लाभ:

    1. **नागदोष शांति:** जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग या नागदोष होता है, वे आर्थिक संकट, स्वास्थ्य समस्या, पारिवारिक कलह आदि विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना कर सकते हैं। नागशांतिस्तोत्रम् का पाठ नागदोष की शांति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। नियमित रूप से इसे जप करने से व्यक्तिगत इन स्मारकों से मुक्ति पा सकते हैं। नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    2. **सर्प भय से मुक्ति:** यदि किसी को सर्प भय से अत्यधिक भय है या सर्पदंश का भय सताता है, तो इस स्तोत्र का पाठ उसे मानसिक शांति और उपदेश प्रदान कर सकता है। यह नकारात्मक ऊर्जा और भय को दूर करने में सहायक होता है।नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    3. **कृषि एवं पर्यावरण संरक्षण:**नागों को कृषि के संरक्षक के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि वे किसानों को जहर से बचाते हैं। इसलिए, नागों की शांति और संतुष्टि के लिए इस स्तोत्र का पाठ करने से समुद्र की रक्षा होती है, और पर्यावरण को भी लाभ होता है।

    4. **रोग-निवारण:** नागशांतिस्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्तिगत, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ सकता है। विशेष रूप से सेलेक्ट्रिक बिल्डर या विष्णु से उत्पन्न होने वाली समस्या बहुत महत्वपूर्ण है।नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    5. **धार्मिक और आध्यात्मिक सांस्कृतिक:** यह स्तोत्र शिवजी के प्रति भक्ति भाव को और अधिक गहरा करता है। शिवजी की कृपा से व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति मिलती है, जिससे जीवन में संतुलन और स्थिरता आती है।

    ### नागशांति विधिस्तोत्रम् का पाठ:

    नागशांतिस्तोत्रम् का पाठ सुबह या शाम के समय करना चाहिए। विशेष रूप से नाग पंचमी, श्रावण मास या अन्य पवित्र अवसरों पर जाप करने से विशेष फल प्राप्त होता है। पाठ करने से पहले स्वतंत्रता का ध्यान रखें और भगवान शिव या नाग देवता की प्रतिमा के सामने पाठ करें। श्रद्धा एवं भक्ति के साथ किया गया पाठ अति फलदायक होता है।

    ### नागशांतिस्तोत्रम् का मॉडल महत्वपूर्ण:

    आज के युग में, जहाँ लोग मानसिक तनाव, आर्थिक संकट और विभिन्न शारीरिक रोगों से प्रभावित होते हैं, वहाँ यह स्तोत्र मानसिक शांति और समस्याओं के समाधान का एक सरल उपाय प्रदान करता है। इसका पाठ नियमित रूप से करने से व्यक्ति न केवल नागद्वीप और समुद्री भय से मुक्ति है, बल्कि आपके जीवन में आध्यात्मिक और आध्यात्मिक संतोष का अनुभव भी होता है। साथ ही, यह पर्यावरण एवं कृषि संरक्षण में भी सहायक सिद्ध होता है, क्योंकि नागों का हमारे पर्यावरण में महत्वपूर्ण स्थान है।नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patnahttp://Raghavpuja.com

    मूल रूप से, **नागशान्तिस्तोत्रम्** का नियमित पाठ व्यक्ति को केवल व्यक्तिगत आदर्श से मुक्ति नहीं दिलाता है, बल्कि उसे एक स्थिर और समृद्ध जीवन की दिशा में भी प्रेरित करता है।नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    🙏विश्वामित्र का आगमन🙏



    🙏विश्वामित्र का आगमन🙏
    अयोध्यापति महाराज दिसंबर के दरबार में यथोचित आसन पर गुरु प्रवचन, मंत्रिगण और दरबारीगण बैठे थे।
    अयोध्यानरेश ने गुरु विश्राम से कहा, हे गुरुदेव! जीवन तो क्षण भंगुर है और मैं वृद्धावस्था की ओर चरम पर जा रहा हूं। राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के चारों ओर ही राजकुमार अब वयस्क भी हो गए हैं। मेरी इच्छा है कि इस शरीर को राजकुमारों की शादी से पहले देख लें। मूलतः आपसे अनुरोध है कि इन राजकुमारों के लिए उपयुक्त कन्याओं की खोज करें। महाराज की बात बिल्कुल वैसी ही है जैसे द्वारपाल ने ऋषि विश्वामित्र के आगमन की जानकारी दी। स्वयं राजा दशरथ ने द्वार तक विश्वामित्र के अभ्यर्थना की और आदर निर्भय के दर्शन कर उन्हें दरबार के स्थान ले आये और गुरु प्रवचन के पास ही उनके यथोचित साक्षात् दर्शन दिये।
    कुशलक्षेम प्लांट के प्रसिद्ध राजा मंदिर में अंकित वाणी में ऋषि विश्वामित्र ने कहा था, हे मुनिश्रेष्ठ! आपके दर्शन से मैं कृतार्थ हुआ और आपके चरण की पवित्र धूलि से यह राजदरबार और संपूर्ण अयोध्यापुरी धन्य हो गया। अब कृपया अपना आने वाला प्रपोजल बताएं। किसी भी प्रकार की आपकी सेवा लेकर मैं स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली समझूंगा।
    राजा के विनयपूर्ण वचनों को सुनकर मुनि विश्वामित्र बोले, हे राजन! आपने अपने कुल के प्रतिबंध के सिद्धांत ही वचन कहे हैं। इक्ष्वाकु वंश के राजकुमार की गुप्त भक्ति गुरु, ब्राह्मण और ऋषि-मुनियों की प्रति सदैव एक ही रहती है। मैं आपके पास एक विशेष प्रस्ताव से आया हूं, समझिए कि कुछ अवसादों के लिए आया हूं। यदि आप मुझे प्राचीन वास्तुशिल्प के वचन देते हैं तो मैं अपनी मांग आपके समक्ष प्रस्तुत करू। आपके दिए गए वचन में मैं बिना कुछ मांगे ही वापस आ गया हूं।
    महाराज दशरथ ने कहा, हे ब्रह्मर्षि! आप अपनी मांग को पूरा करें। पूरी दुनिया जानती है कि रघुकुल के राजकुमार का वचन ही उनकी प्रतिज्ञा है। आप मांग रहे हैं तो मैं अपना शीशा कट भी आपके स्टेज पर रख सकता हूं। उनके इन वचनों से प्रेरणा लेकर ऋषि विश्वामित्र बोले, राजन! मैं अपने आश्रम में एक यज्ञ कर रहा हूँ। इस यज्ञ के पूर्णाहुति के समय मारीच और सुबाहु नाम के दो राक्षस ज्ञान रक्त, माता आदि अपवित्र देवता यज्ञ वेदी में भस्म देते हैं। इस प्रकार यज्ञ पूर्ण नहीं होता। ऐसा वे कई बार कर चुके हैं। मैं उन्हें अपने तेज़ से श्राप नष्ट भी नहीं कर सकता क्योंकि यज्ञ समय पर क्रोध करना अनुचित है।

        मुझे पता है कि आप मर्यादा का पालन करने वाले, ऋषि मुनियों के हितैषी एवं प्रजावत्सल राजा हैं। मैं विनती करता हूं कि आप ज्येष्ठ पुत्र राम की मांग करें ताकि वह मेरे साथ राक्षसों की रक्षा कर सके और मेरा यज्ञानुष्ठान निर्विघ्न पूरा हो सके। मुझे पता है कि राम आसानी से उन दोनों का संहार कर सकते हैं। मूलतः केवल दस दिन के लिए राम को मुझे दे देना। कार्य पूरा हुआ ही मैं उन्हें कुशल आपके पास वापस आ गया दंगल।
    विश्वामित्र की बात से राजा दशरथ को अत्यंत दुःख हुआ। ऐसा लगा कि अभी वे मूर्च्छित हो गये। फिर स्वयं को सहारा देकर उन्होंने कहा, मुनिवर! राम अभी बच्चा है। राक्षसों का सामना करना उसके लिए संभव नहीं होगा। आपके यज्ञ की रक्षा करने के लिए मैं स्वयं ही जाने को तैयार हूं। विश्वामित्र बोले, राजन! आप तनिक भी सन्देह नहीं कर सकते कि राम उनका सामना नहीं कर सकते। मैंने अपने योगबल से उनकी शक्तियों का अनुमान लगाया है। आप निश्चिंत राम को मेरे साथ भेज दीजिए।
    इस पर राजा दशरथ ने उत्तर दिया, हे मुनिश्रेष्ठ! राम ने अभी तक किसी राक्षस की माया प्रपंचों को नहीं देखा है और उसे इस प्रकार के युद्ध का अनुभव भी नहीं है। जब से वह पैदा हुई है, मैंने उसे अपनी आँखों के सामने से कभी ओझल भी नहीं दिया है। उसके वियोग से मेरा प्राण निकल जायेगा। आपसे विनती है कि कृपया मुझे सैंय टर्नओवर के आदेश के बारे में बताएं।
    पुत्रमोह से प्रभावित राजा दीक्षांत समारोह को अपनी प्रतिज्ञा से मनाते हुए देख ऋषि विश्वामित्र आवेश में आ गए। उन्होंने कहा, राजन! मुझे नहीं पता था कि रघुकुल में अब प्रतिज्ञा पालन की परंपरा समाप्त हो गई है। यदि पता चलता है तो मैं कदापि नहीं आता। लो मैं अब चल रहा हूँ। बात ख़त्म हो गई उनके मुँह पर गुस्सा से लाल हो गया।
    विश्वामित्र को इस प्रकार के क्रीड़ा प्रकार देखने को मिलते हैं। गुरु राजवंश ने राजा को समझाया, हे राजन! पुत्र के मोह में पतिव्रता रघुकुल की मर्यादा, प्रतिज्ञा पालन और सत्यनिष्ठा को कलंकित मत करना। मैं आपको सलाह देता हूं कि आप राम के बालक होने की बात भूल जाएं और निश्शंक राम को मुनिराज के साथ भेजें। महामुनि परम विद्वान, नीतिनिपुण और अस्त्र-शास्त्र के ज्ञाता हैं। मुनिवर के साथ जाने से राम का किसी प्रकार से भी कोई लेना-देना नहीं हो सकता, वे उनके साथ रह कर शस्त्र और शास्त्र विद्याओं में महान कलाकार हो जायेंगे और उनका कल्याण ही होगा।
    गुरु दशमी के वचनों से नकारात्मक पक्ष, राजा दशमीर ने राम को बुलाया। राम के साथ-साथ लक्ष्मण भी वहाँ चले आओ। राजा दशहरा ने राम को ऋषि विश्वामित्र के साथ जाने की आज्ञा दी। पिता की आज्ञा शिरोधार्य लेकर राम के मुनिवर के साथ जाने के लिए तैयार हो जाएं पर लक्ष्मण ने भी ऋषि विश्वामित्र से साथ चलने के लिए प्रार्थना की और अपने पिता से भी राम के साथ जाने के लिए मांग की। राम और लक्ष्मण पर सभी गुरुजनों से आशीर्वाद लेकर ऋषि विश्वामित्र के साथ चल पड़े।
    सभी अयोध्यावासियों ने देखा कि मंदिर के पीछे से मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र के पीछे की मूर्ति धनुष और टार्कस में बाण राखे दोनों भाई राम और लक्ष्मण ऐसे लग रहे थे मानो ब्रह्मा जी के पीछे दोनों अश्विनी कुमार चले जा रहे हों। अद्भुत कांति से युक्त दोनों भाई गोह की त्वचा से बने काजल के सितारे तूफ़ान थे, हाथों में धनुराम और कटि में तीक्ष्ण धार वाली कृपाणें शोभायमान हो रही थीं। ऐसा अनोखा हुआ था मनो स्वयं शौर्य ही शरीर धारण करके उठ जा रहे थे।
    टाटा विटपों के मध्य से पर्वत छत कोस महंगा मार्ग पार करके वे पवित्र सरयू नदी के तट पर पहुँचे। मुनि विश्वामित्र ने स्नेहयुक्त मधुर वाणी में कहा, हे वत्स! अब तुम लोग सरयू के पवित्र जल से आचमन स्नानादि करके अपनी थकान दूर कर लो, फिर मैं विश्राम प्रशिक्षण दूँगा। प्रथम मैं शत्रु बल और अतिबला नामक विद्या सिखाऊंगा। इन विद्याओं के विषय में राम की जिज्ञासा प्रकट होती हुई ऋषि विश्वामित्र ने बताई, ये दोनों ही विद्याएँ प्रमुख हैं। इन विद्याओं में पारंगत लोगों की गिनती दुनिया के श्रेष्ठ पुरुषों में होती है। विद्वान ने अन्वेषक ने सभी विद्याओं की जननी बताई है। इन विद्याओं को प्राप्त करके तुम भूख और प्यास पर विजय प्राप्त करो। इन तेजोमय विद्याओं की सृष्टि स्वयं ब्रह्मा जी ने की है। इन विद्याओं को पाने का अधिकारी समझ कर मैं साम्राज्य उदाहरण प्रदान कर रहा हूँ।
    राम और लक्ष्मण की स्नानादि से निवृत्त होने के मूर्तिमान विश्वामित्र जी ने उन्हें इन विद्याओं का दीक्षा दी। इन विद्याओं के प्राप्त होने पर उनके मुख मंडल पर अद्भुत होने का कांति आ गया। त्रि ने सरयू तट पर ही विश्राम किया। गुरु की सेवा के लिए दोनों भाई त्रिण साडी पर सो गए..

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