हनुमान चालीसा और आरती, बजरंग बाण श्री राम स्तुति || हनुमान चालीसा ||
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है, इससे शनि जनित पीड़ा से मुक्ति मिलती है, (चाहे शनि की ढैय्या हो या साढ़े साती)। आजकल में हनुमान जी के तीर्थ में श्रद्धालु भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं साथ ही अपनी प्रिय बूरी का प्रसाद चढ़ाते हैं। बजरंगबली को संकटमोचक भी कहा जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों को सभी संकट दूर कर देते हैं। शास्त्रों और पुराणों में हनुमान जी को मंत्रमुग्ध करने के लिए मंगलवार दोपहर को हनुमान जी को मंत्रमुग्ध कर दें। आइए शुरू करें हनुमान चालीसा का पाठ –
दोहा :
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनुं रघुबर बिमल जसु, जो ठीकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु कल मोहिं, हरहुसे बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान् ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुं लोक संपर्क।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महावीर बिक्रम बजरंग
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिजय।
कंधे मूंज जनेऊ साजै।
संरा सुवन केसरीनंद।
तेज प्रताप महा जग बंधन।।
विद्यावान गुणी अति चतुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लक्ष्मण सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियाहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
मम तुम भरत प्रियहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्म्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ समर्पण।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा।
नारद सारद सहित अहिसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहं ते।
कबि कोबिद कहि साके स्थान ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्म्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि फल मधुर जानु।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लंबी गई अचरज नहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सहज अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसेरे।।
सब सुख लहै विवाह सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।
आपन तेज सम्हारो आपै।
त्रिलोक हांक तेन कांपै।।
भूत पिशाच निकट नहीं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तेन हनुमान् सिद्धांतवै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तीन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारो जुग परतापप्रिय।
परमसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हारे पास।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हारे भजन राम को पावै।
जन्म-जन्म के दुःख बिसारवै।।
अंतकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरै।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करै।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान् गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ें हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह।।
दोहा
पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप।
राम लक्ष्मण सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
श्रीराम स्तुति, श्री राम स्तुति
श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भयदारुणं।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज पद कंजारुणं।।
कंदर्प अगणित अमित छवि, नवनील-नीरज सुंदरं।
पत् पीत मनहु तदित शुचि शुचि नौमि जन सुतावरं।।
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनं।
रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशशिनन्दनं।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूषणं।
आजानुभुज शर-चाप-धर,मत-जित-खरधूशनं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-यज्ञं।
मम हृदय-कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर संवरो।
करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
एहि भनति गौरी असीस सानि सिय सहित हियं हरषीं अली।
तुलसी भवनिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चाले।।
।।सोरठा।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बम अंग फरकन लागे।।
।।सियावर रामचन्द्र की जय।।
बजरंग बाण, बजरंग बाण
दोहा
निश्चय प्रेम विशेष ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान्॥
चौपाई
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।
जानके काज बिलंब न कीजै। आतुर डोरि महा सुख दीजै।
जैसे कूदि सिन्धु महीपारा। सुरसा बदन पतिबिस्तारा।
आगे जाय लंकिनी कथा। मारेहु लात मारी सुरलोका।
जय विभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।
बाग उजारी सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा।
अक्षय कुमार मारी सहारा। लूम लपेटि लंक को जरा।
लाह समान लंक जरि गे। जय जय धुनसि सुरपुर मह भाई।
अब बिलंब केहि करण स्वामी। कृपया करहु उर अंतरयामी।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दुःख करहु निपात।
जय गिरिधर जय जय सुखसागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बजर की कीले।
गदा बज्र लै बैरिहि मारो। महाराज प्रभु दास उबरो।
ओंकार हुंकार महाबीर धावो। वज्र गदा हनु बिलम्ब न लवो।
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।
सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरु मारु जायके।
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा।
पूजा जप तप नेम आचार्या। नहिं जानत हौं दा।
वन उपवन मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नहीं।
पांय परौं कर जोरि मनावौं। यह अवसर अब केहि गोहरावौं।
जय अंजनी कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।
बदन कराल काल कुल घालक. राम सहाय सदा प्रति पालक।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मरीमार।
अर्थात मारु तोहिं सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।
जेन सुता हरिदास कहावो। ताकी सपथ देरी न लावो।
जय जय जय धुनि होत आकाश। सुमिरत होत दु:ख दुख नाशा।
चरण-शरण कर जोरि मनावौं। यह अवसर अब केहि गोहरावौं।
उठु-उठु चलु तोहिं राम दोहाई। पांय परौं कर जोरि मनाय।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता।
ॐ हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराणे खल दल।
अपने जन को तुरत उबरो। सुमिरत होत आनंद हमारो।
येही बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहो फिर कौन उबरे।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करण प्राण की।
यह बजरंग बाण जो जपाई। तेहि ते भूत प्रेत सब कंपै।
धूप देवता अरु जपाई सदैव। ताके तनु नहिं रहे कलेशा।
दोहा
प्रेम विशेषहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कर्ज शुभ, सिद्ध करैं हनुमान्।।
हनुमान जी की आरती, हनुमान जी की आरती
आरती की जय हनुमान लला की।
दल दुष्टन कला की।
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न हुंके।
अंजनि पुत्र महाबलाद।
सेंटन के प्रभु सदा सहाय।
दे बीरा पठाए।
लंका रिलीज़ सिया सुध ख़बर।
लंका सो कोट समुद्र सी खाँ।
जात पवनसुत बार न लै।
लंका जारी असुर संहारे।
सियारामजी के काज संवारे।
ल
क्षमां मूर्च्छित पड़े सकारे।
आनि संजीवन प्राण उबारे।
पति पाताल तोरि जमकारे।
अहिरावण की भुजा उखाड़े।
वाम भुजा असुर दल मारे गए।
दायीं भुजा संतजन तारे।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारते।
जय जय जय हनुमान् उचारे।
कंचन था कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई।
जो हनुमानजी की आरती गावै।
बसी बैकुंठ परमपद पावै।
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