पंडित बुकिंग की सुविधा

: पंडित प्रवचन की सुविधा

भारत में धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। हमारे जीवन में जब भी कोई महत्वपूर्ण अवसर या पर्व आता है तो हम अपने एकल के साथ सामूहिक पूजा करने का संकल्प लेते हैं। लेकिन कभी-कभी पूजा के लिए उपयुक्त पंडित की तलाश करना कठिन काम बन जाता है। इसी समस्या के समाधान के लिए राघवपूजा डॉट कॉम की कंपनी उपलब्ध है। इस लेख में हम राघवपूजा डॉट कॉम के माध्यम से पंडित परामर्श की प्रक्रिया, इसके लाभ और व्यवसाय के बारे में चर्चा करेंगे।

राघवपूजा डॉट कॉम का परिचय

पंडित शिक्षण सुविधा
पंडित शिक्षण सुविधा

राघवपूजा डॉट कॉम एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो विभिन्न शहरों में पंडितों की सेवा के लिए उपलब्ध है। यदि आप पटना, अयोध्या, या बैंगलोर में दाखिला लेते हैं, तो यहां पंडित बुक करने की सुविधा उपलब्ध है। इस टूल के माध्यम से, आप अपने समय और सुविधा के अनुसार उपयुक्त और अनुभवी पंडितों से पूजा स्थल आसानी से बुक कर सकते हैं।

#### पंडित प्रवचन की प्रक्रिया

पंडित बुक करने की प्रक्रिया बेहद सरल और सरल है। राघवपूजा डॉट कॉम विक्रेता पर, आप निम्नलिखित चरण का पालन कर सकते हैं:

1. **पंजीकरण:** सबसे पहले, आपको वेबसाइट पर पंजीकरण करना होगा। इसके लिए आप अपना ईमेल पता और मोबाइल नंबर का उपयोग कर सकते हैं।

2. **पंडित का चयन:** पंजीकरण के बाद, आपको विभिन्न पंडितों की सूची दिखाई देगी। आप उनकी विशेषज्ञता, अनुभव और शिक्षा के आधार पर पंडित का चयन कर सकते हैं।

3. **तारीख और समय निर्धारित करें:** चुने गए पंडित के साथ अपनी पूजा की तारीख और समय निर्धारित करें।

4. **भुगतान:** शो की पुष्टि करने के लिए आपको भुगतान करना होगा। राघवपूजा डॉट कॉम विभिन्न वेबसाइट्स भुगतान विकल्प की सुविधा प्रदान करता है।

5. **पंडित का आगमन:** निर्धारित तिथि और समय पंडित आपके स्थान पर दर्शन और पूजा का आयोजन करेंगे।

#### राघवपूजा डॉट कॉम का लाभ

1. **सुविधा:** घर बैठे पंडित बुक करने की सुविधा मिलने से आपको भटकने की आवश्यकता नहीं है।

2. **अनुभवी पंडित:** राघवपूजा डॉट कॉम पर सभी पंडित विशेषज्ञ और उपकरण उपलब्ध हैं, जो विभिन्न पूजा-पाठ के विशेषज्ञ विशेषज्ञ हैं।

3. **समय की बचत:** ऑनलाइन माध्यम से आपको समय की बचत होती है, जिससे आप अन्य कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

4. **समीक्षाएं और रेटिंग:** आप पंडितों की समीक्षाओं और रेटिंग्स से सही पंडित का चयन कर सकते हैं, जिससे आपकी पूजा का अनुभव बेहतर हो सकता है।

5. **विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान:**राघपूजा डॉट कॉम विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों की सेवा प्रदान करता है, जैसे कि निवास, जन्मदिन पूजा, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, आदि। पंडित शिक्षण सुविधा

#### पूजा की विभिन्न विधियाँ

भारत में पूजा की विभिन्न विधियाँ हैं, जिन पर विभिन्न अवसरों और धार्मिक पूजा-अर्चना पर रोक लगाई जाती है। राघव पूजा विधि डॉट कॉम पर आपके लिए निम्नलिखित प्रमुख पूजा सामग्री उपलब्ध हैं:

1. **गृह प्रवेश पूजा:** नए गृह प्रवेश के समय यह पूजा विशेष महत्वपूर्ण होती है। इस पूजा से घर में सुख, शांति और समृद्धि की कामना की जाती है।

2. **नामकरण संस्कार:**बच्चों के नामकरण के लिए विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। यह संस्कार बच्चे के जीवन में खुशियों का आगमन होता है।

3. **हवन:** एक पवित्र अग्नि में आहुति देने की विधि है, जो किसी भी पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

4. **जन्मदिन पूजा:**जन्मदिन पर विशेष पूजा का आयोजन करके व्यक्ति के जीवन में शुभता और समृद्धि की कामना की जाती है।

5. **संकट मोचन हनुमान चालीसा:** हनुमान चालीसा का पाठ संकटों से मुक्ति के लिए किया जाता है।

#### विशेष अवसरों पर पूजा का महत्व

विभिन्न त्योहारों और विशेष अवसरों पर पूजा का महत्व बहुत अधिक है। जैसे कि:

– **दिवाली:** इस पर्व पर लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है। लोग घर में लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं ताकि घर में धन और समृद्धि का आगमन हो।

– **नववर्ष:** नववर्ष की शुरुआत पर लोग अपने परिवार के साथ मिलकर पूजा करते हैं ताकि नए साल में शुभता और सफलता मिले।

– **मकर संक्रांति:** इस पर्व पर सूर्य देव की पूजा की जाती है, जिससे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। पंडित शिक्षण सुविधा

#### निष्कर्ष इंजीनियर पंडित जी पटना में 

राघवपूजा डॉट कॉम के पंडित सलाहकार की एक आदर्श और प्रभावशाली प्रक्रिया है, जो आपके धार्मिक अनुष्ठानों को आसान बनाती है। विभिन्न तीर्थस्थलों में पंडितों के दर्शन, उनके विशेषज्ञता और अनुभव के आधार पर चुनाव की सुविधा, और समय की बचत जैसे लाभ इस सेवा को विशेष रूप से प्रभावित किया जाता है। इस डीलरशिप के माध्यम से आप अपने धार्मिक सिद्धांतों और साध्य को सरलता से जीवित रख सकते हैं।

यदि आप भी धार्मिक अनुष्ठानों को सरलता से करना चाहते हैं, तो आज ही राघवपूजा डॉट कॉम पर पंडित बुक करें और अपने जीवन को आध्यात्मिकता से परिपूर्ण करें। पंडित शिक्षण सुविधा

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1  ***परिचय***

राघव पूजा एक ऑनलाइन प्लेटफार्म है जो आपको पंडित  सेवा प्रदान करता है।राघवपूजा अयोध्या की संस्था के द्वारा संचालित किया गया है।  जो विगत 10 वर्षो से सेवा प्रदान करते आ रहा है। राघवपूजा टीम में जितने ब्राह्मण है वो सारे उच्च कोटि के विद्या अध्यन किए हुवे है। सारे ब्राह्मण का परीक्षण के बाद ही राघव पूजा अपनी टीम में शामिल करता है। राघव पूजा आपके अपने शहर में पूजन प्रदान करता है। अगर आप ऑनलाइन पंडित जी को ढूंढ रहे हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं। राघवपूजा योग्य और विश्वसनीय पंडित प्रदान करता है। राघवपूजा सभी प्रकार का कर्म जैसे नामकरण संस्कार से लेकर श्राद्ध कर्म तक सभी प्रकार के कर्म का पंडित प्रदान करता है नियर में पंडित जी पटना

2 **हमारी सेवाएँ**

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1. **ऑनलाइन पंडित बुकिंग**: राघवपूजा.कॉम की वेबसाइट पर जाकर आप आसानी से अपने पसंदीदा पंडित को बुक कर सकते हैं। आपको बस अपना नाम ,फोन नंबर,अपना स्थान,अपनी पूजा का विवरण देना है  और हमारी टीम आपके लिए उपयुक्त पंडित की व्यवस्था करेगी।नियर में पंडित जी पटना

2. **विशेष पूजा अनुष्ठान**: हम विभिन्न प्रकार की पूजा और अनुष्ठान करवाते हैं, जैसे कि घर की गृह प्रवेश पूजा, विवाह पूजा, जन्मोत्सव पूजा,  सत्यनारायण पूजा ,दुर्गा पूजन ,ग्रह पूजन,जप,और अन्य धार्मिक अनुष्ठान। आप अपनी आवश्यकताओं के अनुसार पूजा का चयन कर सकते हैं।नियर में पंडित जी पटना

3. **उच्च गुणवत्ता वाले पंडित**: हमारे पंडित वेद और शास्त्रों में प्रशिक्षित और विश्वसनीय है। वे अपनी विशेषज्ञता और अनुभव के साथ आपकी पूजा को संपन्न करते हैं, जिससे आपको एक आध्यात्मिक अनुभव और आनन्द मिलता है।नियर में पंडित जी पटना

4. **सुलभता**: हमारे प्लेटफार्म का उपयोग करना बहुत आसान है। आप अपनी सुविधानुसार समय और स्थान चुन सकते हैं। नियर में पंडित जी पटना

3**कैसे बुक करें?**

. **वेबसाइट पर जाएँ**: राघव पूजा की वेबसाइट (raghavpuja.com) पर जाएँ।

2. **सेवा का चयन करें**: पूजा का प्रकार चयन करें।

3. **सूचना भरें**: अपनी संपर्क जानकारी और अन्य आवश्यक विवरण भरें

4 **हमारा संपर्क सूत्र**8210360545

4**हमारी पहुंच**

राघव पूजा की सेवाएँ पटना ,बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे, पंजाब, दिल्ली, अयोध्या,कानपुर,सासाराम,गया, मुंबई,लखनऊ, इंदौर,और आपके हर शहर में भी उपलब्ध हैं। यहाँ के पंडित अपने ज्ञान और अनुभव के साथ आपकी धार्मिक आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं। **अयोध्या**: अयोध्या, जिसे भगवान राम की जन्मभूमि माना जाता है, यहाँ भी हम विशेष पूजा अनुष्ठान आयोजित करते हैं। आप यहाँ के पंडितों से सच्चे भक्तिभाव के साथ पूजा करवा सकते हैं।नियर में पंडित जी पटना

**बेंगलुरु**: बेंगलुरु, जो एक आधुनिक शहर है, यहाँ पर भी हमारी सेवाएँ उपलब्ध हैं। बेंगलुरु में रहने वाले भारतीय नागरिक अपनी धार्मिक मान्यताओं को बनाए रखने के लिए हमारे पंडितों की सेवाएँ ले सकते हैं।नियर में पंडित जी पटना

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5**निष्कर्ष**

राघव पूजा एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो धार्मिकता को सरल बनाता है। आप अपने व्यस्त जीवन में भी अपनी धार्मिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। ऑनलाइन पंडित बुकिंग के माध्यम से, आप अपने घर के आराम से पूजा का आयोजन कर सकते हैं। नियर में पंडित जी पटना

आपकी पूजा के लिए योग्य और अनुभवी पंडितों की टीम राघव पूजा में है, जो आपकी हर धार्मिक आवश्यकता का ख्याल रखेगी। तो अब इंतजार किस बात का? राघव पूजा से जुड़ें और अपनी पूजा का आनंद लें! नियर में पंडित जी पटना

अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर जाएँ: [raghavpuja.com](http://raghavpuja.com)

इस लेख के माध्यम से, राघव पूजा ने यह सुनिश्चित किया है कि आप सभी को एक साधारण और सुविधाजनक तरीके से धार्मिक अनुष्ठान करने का अवसर मिले। आपकी आध्यात्मिक यात्रा में हम आपके साथ हैं।  नियर में पंडित जी पटना

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#राघव पूजा: ऑनलाइन पंडित  सेवा

भारत की संस्कृति में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष प्रमुख स्थान है। जीवन के विभिन्न पर्यवेक्षणों पर हमें कई प्रकार के धार्मिक संस्कारों की आवश्यकता है। लेकिन अक्सर सही पंडित का चयन करना एक चुनौती बन जाता है। “राघव पूजा” एक कैथोलिक पंडित परामर्श सेवा है, जो विशेष रूप से पटना, अयोध्या और बैंगलोर, लखनऊ, कानपुर ईवम सहित कई अन्य स्थानों पर उपलब्ध है। यह सेवा आपको आपके एएस-पास के उपयुक्त पंडितों से जुड़ने की सुविधा प्रदान करती है जो ऑफ़लाइन पंडित परामर्श सेवा प्रदान करती है।

राघव पूजा की विशेषताएँ

1. **सुविधाजनक ऑनलाइन टूर**

राघव पूजा की वेबसाइट ( raghavpja.com ) पर आप आसानी से पंडित की सलाह ले सकते हैं। इसके लिए आपको बस कुछ आसान स्टेज का पालन करना है। यहां आप पूजा की विधि, तिथि, समय और स्थान का चयन कर सकते हैं। इसके बाद आप पंडित के अनुसार अपनी खाद का चयन कर सकते हैं।

2. **पंडितों के विशेषज्ञ**
हमारे पास अनुभवी और योग्य पंडितों की कई मान्यताएँ हैं। जो विभिन्न प्रकार के पूजा-पाठ में विशेषज्ञता रखते हैं। यदि वह गृह प्रवेश पूजा हो, विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार या कोई अन्य धार्मिक अनुष्ठान हो, तो हमारे पंडित हर पूजा की स्थापना करते हैं। पंडित संस्कृत, हिंदी और अन्य स्थानीय समुद्रों में पूजा कर सकते हैं, जिससे आप किसी भी भाषा की समस्या का सामना नहीं कर सकते। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

3. **स्थानीय पंडितों का चयन**

राघव पूजा की विधि यह है कि आप अपने आस-पास के पंडितों को चुन सकते हैं। यदि आप पाटण, अयोध्या या बेंगलुरु, बेंगलुरु, कानपुर में हैं तो आप अपनी स्थिति के अनुसार औद्योगिक पंडितों के सेक्टरों से प्राप्त कर सकते हैं। यह सुविधा आपको अपनी धार्मिक आवश्यकताओं को समय पर पूरा करने में मदद करती है। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

4. **समय का प्रबंधन**

साझीदारी में समय की कमी एक आम समस्या है। राघव पूजा आपको अपने समय के अनुसार पूजा का आयोजन करने की सुविधा प्रदान करती है। आप अपने कार्य के अनुसार दिनांक एवं समय का चयन कर सकते हैं, जिससे आपको कोई परेशानी नहीं होगी।ऑनलाइन पंडित परामर्श सेवा

5. **विविध पूजा विकल्प**

राघव पूजा के लिए विभिन्न प्रकार की पूजा सेवाएँ प्रदान की जाती हैं, जैसे:

– **गृह प्रवेश पूजा:** नए घर में प्रवेश करने से पहले जाने वाली पूजा।
– **विवाह पूजा:**विवाह उत्सव के लिए सभी आवश्यक धार्मिक अनुष्ठान।
– **मुंडन संस्कार:**बच्चे के पहले बाल कटवाने की पूजा।
– **सालगिरह पूजा:**जन्मदिन या विशेष अवसर पर जाने वाली पूजा।ऑनलाइन पंडित भक्ति सेवा

6. **सुरक्षित भुगतान विकल्प**

राघव पूजा आपकी सुरक्षा के लिए विभिन्न भुगतान विकल्प प्रदान करता है। आप ऑनलाइन ट्रांजेक्शन, क्रेडिट/डेबिट कार्ड या अन्य क्रेडिट कार्ड से सुरक्षित रूप से भुगतान कर सकते हैं। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

7. **ग्राहक सेवा**

हमारी ग्राहक सेवा टीम सदैव आपकी सहायता के लिए तैयार है। यदि आपको किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता है, तो आप हमसे सीधे संपर्क कर सकते हैं। हमारा उद्देश्य आपके अनुभव को सुखद और सरल बनाना है। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

राघव पूजा का उपयोग कैसे करें

राघव पूजा की सेवा का उपयोग करना अत्यंत सरल है। बस फॉलो करने का चरण शुरू करें:

1. **वेबसाइट पर:** [ raghavpja.com ]( http://raghavpja.com ) पर।
2. **पंडित परामर्श विकल्प चुनें:** उपलब्ध होमपेज पर परामर्श परामर्श पर क्लिक करें।
3. **आध्यात्मिक जानकारी फ़ाइल:** पूजा के प्रकार, तिथि, समय और स्थान का चयन करें।
4. **पंडित का चयन करें:** उपलब्ध पंडितों की सूची में से अपनी पसंद के अनुसार पंडित का चयन करें।
5. **भुगतान करें:** सुरक्षित भुगतान विकल्प का उपयोग करके अपनी विश्वसनीयता सुनिश्चित करें।
6. **पुष्टि प्राप्त करें:**ओके के बाद आपको एक पुष्टिकरण संदेश मिलेगा। वैदिक पंडित प्रवचन सेवा
सूत्र संपर्क 8210360545

राघव पूजा क्यों चुनें?

– **विश्वासनीयता:**राघ पूजा एक प्रतिष्ठित सेवा है, जो पिछले कई वर्षों से चली आ रही है और साझी का पालन करती है।
– **सुविधा:** आपके घर से बाहर जाने के लिए ऑनलाइन शो की आवश्यकता नहीं है।
– **अनुकूलन:** आप अपनी सामग्री के अनुसार पूजा का चयन कर सकते हैं।
– **संपूर्णता:** हमारे पंडित हर पूजा को विधि-निर्धारण करते हैं। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

## ग्राहक अनुभव

हमारे चैंबर राघव पूजा की सेवाओं के प्रति समर्पित हैं। वे कहते हैं कि हमारे पंडितों की सेवा और व्यापारियों ने उनकी पूजा के अनुभव को अद्भुत बना दिया है। “मेरे द्वारा निर्मित राघव पूजा से अपने गृह प्रवेश पूजा के लिए पंडित ने बुक किया था, और वे समय पर आये और पूरी पूजा विधि की।” – एक ग्राहक की प्रतिक्रिया। क्लिनिकल पंडित परामर्श सेवा

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यदि आपको पटना, अयोध्या या लखनऊ, कानपुर में किसी भी प्रकार की पूजा की आवश्यकता है, तो राघव पूजा पर जाएं और अपने लिए सही पंडित बुक करें। यह सेवा आपको धार्मिक अनुष्ठानों को सरल और अंतिम बनाने में मदद करेगी। आज ही अपनी पूजा की प्रतिज्ञा करें और अपने धार्मिक कार्यकर्ताओं को सुरक्षित करें। “राघव पूजा” के साथ आप केवल अपने आस-पास के पंडितों से जुड़ सकते हैं, बल्कि अपनी धार्मिक आस्था को भी आसानी से पूरा कर सकते हैं। ऑनलाइन पंडितऑनलाइन पंडित
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बेंगलुरू में उत्तर भारतीय पंडित 



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    दुर्गा *देविकवच स्तोत्र। नियर मी पंडित इन पटना 8210360545 एक शक्तिशाली संस्कृत स्तुति है, जो माँ दुर्गा को समर्पित है। इसका उद्देश्य देवी दुर्गा की कृपा और उनकी सुरक्षा प्राप्त करना है। यह स्तोत्र **मार्कंडेय पुराण** के अंतर्गत आता है और **दुर्गा सप्तशती** का एक महत्वपूर्ण भाग है। भक्त इस स्तोत्र का पाठ देवी से सुरक्षा, मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन की प्रार्थना करते हैं। देविकवाच के श्लोकों में गहरे आध्यात्म और चित्रण का समावेश है, जो भक्त के जीवन के हर सिद्धांत को सुरक्षित करने की प्रेरणा देता है।
    संरचना और महत्व

    “कवच” का अर्थ “रक्षा कवच” या “ढाल” होता है। **देविकावाच स्तोत्र** का पाठ करना मुख्य उद्देश्य एक आभासी सुरक्षा कवच का निर्माण करना है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शिक्षा से बचाव करता है। यह स्तोत्र विभिन्न देवी-देवताओं का आह्वान करके शरीर के विभिन्न अंगों और जीवन के सिद्धांतों की सुरक्षा की प्रार्थना करता है।देविकावच स्तोत्र। नियर मी पंडित इन पटना 8210360545

    इस स्तोत्र में **महाकाली**, **महालक्ष्मी**, और **सरस्वती** की तरह विभिन्न देवियों का उल्लेख है, रावण शरीर के विभिन्न अंगों की सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है। देविकवच स्तोत्र. नियर मी पंडित इन पटना 8210360545 जैसे:
    – **दुर्गा** से संपूर्ण शरीर की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है।
    – **चामुंडा** को सिर की रक्षा के लिए बुलाया जाता है।
    – **भद्रकाली** से हृदय की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है।

    इस प्रकार, यह स्तोत्र एक समग्र आध्यात्मिक साधना का प्रतीक है।

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    देवीवाच स्तोत्र का महत्व केवल इसके शाब्दिक अर्थ में है, बल्कि इसका नामकरण रूप भी है, जो ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। हर देवी किसी न किसी ब्रह्मांडीय शक्ति या सिद्धांत का प्रतीक है, और कवच इस बात का संकेत है कि माँ दुर्गा की रक्षा करने वाली और पोषण करने वाली शक्तियाँ हर पल हमारे साथ हैं।

    इस स्तोत्र का पाठ न केवल देवी की कृपा को प्राप्त करना है, बल्कि यह हमें याद है कि ब्रह्मांड में और हमारे अंदर **शक्ति** (दिव्य स्त्री शक्ति) का वास है। यह स्तोत्र हमें मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, जो हमारे जीवन में आने वाली कथा से लौटने की शक्ति प्रदान करता है। देविकवच स्तोत्र. मेरे निकट पंडित पटना 8210360545

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    1. **नाकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा**: **दैविकवच स्तोत्र** का मुख्य विषय नकारात्मक और दैविक शक्तियों से सुरक्षा है। यह स्तोत्र भौतिक शत्रुओं, बुरे सपनों और मानसिक नकारात्मकता से बचने के लिए देवी से सहायता मांगता है।

    2. **शक्ति का आह्वान**: हर श्लोक देवी की कृपा और शक्ति का आह्वान करता है। यह स्तोत्र भक्त के अंदर सोई हुई शक्ति को जगाने का साधन है, जिससे वे देवी की ऊर्जा अपने जीवन में प्रसारित कर सकते हैं।

    3. **आध्यात्मिक शक्ति**: नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त रूप से मजबूत अनुभूति होती है। शरीर के विभिन्न अंगों और आत्मा के विभिन्न सिद्धांतों की रक्षा की प्रार्थना करके, भक्त मानसिक और ध्वनि रूप से दृढ़ हो जाते हैं। देविकवच स्तोत्र. नियर मी पंडित इन पटना 8210360545

    4. **स्वास्थ्य और कल्याण**: **देविकवाच** केवल सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह मन, शरीर और आत्मा को श्रवण प्रदान करने का माध्यम है, और यह मानसिक तनाव को कम करने, ध्यान केन्द्रित करने और स्थिरता स्थिरता लाने में मदद करता है।

    ### पाठ का लाभ

    1. **मानसिक शांति**: **देविकावाच** का पाठ मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है। इसके श्लोकों का लयबद्ध उच्चारण ध्यान की स्थिति उत्पन्न करता है, जो चिंता और तनाव को कम करता है।

    2. **आध्यात्मिक आन्दोलन**: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त उच्च आध्यात्मिक आदर्शों की ओर अव्यवस्थित होते हैं। देवी की दिव्यता पर ध्यान केन्द्रित करने से धार्मिक स्थलों से मुक्ति मिलती है और भक्त का आत्मिक विकास होता है।

    3. **शारीरिक सुरक्षा**: बहुत से लोग यात्रा के दौरान या संकट के समय **देविकवच स्तोत्र** का पाठ करते हैं, ऐसा माना जाता है कि यह उन्हें सीख और दोस्ती से सीखता है।

    4. **सकारात्मक ऊर्जा**: यह स्तोत्र आसपास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जिससे शांति, सौहार्द और आध्यात्मिक रचनात्मकता का माहौल बनता है। नवरात्रि या अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर इसका पाठ करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है।

    ### निष्कर्ष

    **देविकावच स्तोत्र** केवल सुरक्षा के लिए प्रार्थना नहीं है, यह एक संविधान का स्तोत्र है, जो भक्त को यह प्रमाणित करता है कि देवी की शक्ति हमारे अंदर ही समाहित है। पवित्र श्लोकों के माध्यम से देवी का आह्वान करते समय भक्त न केवल अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं, बल्कि आध्यात्मिक दृढ़ता, दृढ़ता और कल्याण की भी कामना करते हैं। दैनिक साधना के रूप में या विशेष अवसरों पर, **देविकावाच** हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसकी शक्ति, शांति और दिव्य सुरक्षा के लिए पूजा की जाती है।

    देविकवच स्तोत्र. नियर मी पंडित इन पटना 8210360545

     

    देवी कवच

    ॐ अस्य श्रीचण्डीकवाचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः,
    चामुण्ड देवता, अङ्गान्यसोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,
    श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
    ॐ नमरामाचण्डिकायै॥
    मार्कण्डेय उवाच
    ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षकं नृणाम्।
    यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥
    ब्रह्ममोच
    अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
    देव्यस्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥2॥
    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥3॥
    पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
    सप्तमं कालरात्रिति महागौरीति चाष्टमम्॥4॥
    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
    उक्तानयेतानि नामानि ब्राह्मणैव महात्मना॥5॥
    अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रने।
    विषमे दुर्गमे चैव भयावहताः शरणं गताः॥6॥
    न तेषां जायते किंचिदशुभं ऋणसंकते।
    नापादं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥7॥
    यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषं वृद्धिः प्रजायते।
    ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तन्न संशयः॥8॥
    प्रेतसंस्था तु चामुंडा वाराहि महिषासना।
    ऐन्द्री गजसमारुधा वैष्णवी गरुडासना॥य॥
    माहे वाल्वारी वृषारूढ़ा कौमारी शिखिवाहना।
    लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥
    वाल्लेतरूपधारा देवी ई वाल्री वृषभाना।
    ब्राह्मी हंससमारुधा सर्वाभरणभूषिता॥॥
    इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
    नानाभरणशोभाद्य नानारत्नोपशोभिताः॥12॥
    दृश्यन्ते रथमारुढ़ा देव्याः क्रोधसमाकुलाः।
    शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलयुधम्॥3॥
    खेतकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
    कुंतायुधं त्रिशूलं च शारंगमायुधमुत्तमम्॥14॥
    दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभाय च।
    धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥15॥
    नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
    महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी॥16॥
    त्राहि मां देवी दुष्प्रेक्ष्ये शत्रुणां भयवर्धिनि।
    प्राच्यां रक्षतु मामैंन्द्री अग्नियैमग्निदेवता॥17॥
    दक्षिणेऽवतु वाराहि नैर्ऋत्यं खड्गधारिणी।
    प्रतिच्यां वारुणि रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥18॥
    उदिच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
    ऊर्ध्वं ब्रह्मानि मे रक्षेदहस्तद् वैष्णवी तथा॥19॥
    एवं दश दिशो रक्षेच्छमुंडा शववाहना।
    जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥20॥
    अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापिता।
    शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्धनी सस्था॥21॥
    मालाधारी ललाते च भुरुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
    त्रिनेत्र च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥22॥
    शङ्खिनि चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
    कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शंकरी॥तीस॥
    नासिकायां सुगंधा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
    अधारे चामृतकला जिह्वयां च सरस्वती॥24॥
    दन्तं रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
    घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥25॥
    कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वचनं मे सर्वमङ्गला।
    उदरायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धारी॥26॥
    नीलग्रीवा बहिःकंथे नालिकां नलकूबरी।
    स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद् बाहु मे वज्रधारिणी॥27॥
    हस्तयोर्दन्दिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलिशु च।
    नखञ्छूले वल्रि रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुले वल्रि॥28॥
    स्तनौ रक्षेनमहादेवी मनः शोकविनाशिनी।
    हृदये ललिता देवी उद्रे शूलधारिणी॥29॥
    नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्ये वल्रि तथा।
    पूतना कामिका मेढ्रं गुडे महिषावाहिनी ॥30॥
    कात्यां भगवती रक्षेज्जनुनि विन्ध्यवासिनी।
    जङ्घे महाबाला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥31॥
    गुल्फ़योर्नासिंघी च पादपृष्ठे तु तैजसी।
    पादङ्गुलिषु श्री रक्षेत्पादधस्तलवासिनी॥32॥
    नखां दंस्त्रकराली च केसांशिश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
    रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागी वल्वारी तथा॥33॥
    रक्तमज्जवसामांसंन्यास्थिमेदनसि पार्वती।
    अन्तराणि कालरात्रिकल्प च पित्तं च मुकुटे वल्वारी॥344॥
    पद्मावती पद्मकोशे कफे चूड़ामणिस्तथा।
    वर्णो नखज्वलमभेदद्य सर्वसंधिषु॥35॥
    शुक्रं ब्रह्मानि मे रक्षेछायां छत्रे वल्रि तथा।
    उभयं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥
    प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
    वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥
    रसे रूपे च गंधे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
    सत्त्वं रजस्तमश्यैव रक्षेननारायणी सदा॥38॥
    अउ रक्षतु वाराहि धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
    यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥
    गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशुन्मे रक्ष चण्डिके।
    पुत्रान् रक्षेनमहालक्ष्मीर्भार्यं रक्षतु भैरी॥चार्टी॥
    पंथानं सुपथ रक्षेनमार्गं क्षेमकरी तथा।
    राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजय सर्वतः स्थिता॥41॥
    रक्षाहीनं तु यत्स्थानं नैवेद्यं कवचेन तु।
    तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनि॥42॥
    पदमेकं न गच्छेत्तु यदिच्छेच्छुभमात्मनः।
    कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥43॥
    तत्र तत्रार्थलाभाश्च विजयः सार्वकामिकः।
    यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निष्चितम्।
    परमैर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥444॥
    निर्भयो जायते मर्त्यःबातेश्वपराजितः।
    त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृत्तः पुमान्॥45॥
    इदं तु देव्यः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
    यः पत्थेत्प्रयतो नित्यं त्रिसंध्यं श्रेयान्वितः॥46॥
    दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
    जीवेद वर्षशतं सागरमपमृत्युविवर्जितः। 47॥
    नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लुटविस्फोटकादयः।
    स्थावरं जङगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विशम्॥48॥
    अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
    भूचराः खेचराश्यैव जलजारामाचोपदेशिकाः॥49॥
    सहजा कुलजा मेल मेलकिनी शाकिनी तथा।
    अन्तरिक्षचर घोरा डाकिन्यमश्च महाबलः॥50॥
    ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगंधर्वराक्षसः।
    ब्रह्मरक्षास्वेतालाः कूष्माण्डा भैरवदायः ॥51॥
    नश्यन्ति दर्शनात्तस्य क्वाचे हृदि संस्थिते।
    मनोनातिरभवेद् राज्यस्तेजो भगवन्करं परम॥52॥
    यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमंडितभूतले।
    जपेत्सप्तशतिं चण्डिं कृत्वा तु कवचं पुरा॥53॥
    यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
    तावत्तिष्ठति मेदिन्यं संततिः पुत्रपौत्रिकि॥5
    देहन्ते परमं स्थानं यत्सुरैपि दुर्लभम्।
    प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥
    लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥56॥
    इति देव्यः क्वाचं संपूर्णम्। 

    देविकवच स्तोत्र. नियर मी पंडित इन पटना 8210360545

    नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

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    नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna
    नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    *नागशान्तिस्तोत्रम्** नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna एक प्रमुख वैदिक स्तोत्र है, जिसका पाठ नागदोषों एवं सर्प भय से मुक्ति के लिए उपलब्ध है। यह स्तोत्र विशेष रूप से लोगों के लिए माना जाता है कि जो लोग कालसर्प योग, नाग दोष या सर्पदंश के भय से पीड़ित होते हैं। आयो विवरण से जानें कि इसका पाठ करने के क्या फायदे हैं और यह महत्वपूर्ण क्या है।

    नागशांतिस्तोत्रम् का महत्व:नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna
    नागशांतिस्तोत्रम् भगवान शिव और नागों की शांति के लिए एक स्तोत्र रचा गया है। भारत में सर्पों को दिव्य शक्ति के रूप में माना जाता है। उन्हें प्रकृति के संरक्षक और शिव के आभूषण के रूप में देखा जाता है। नाग पंचमी की तरह त्योहारों में सर्पों की पूजा की जाती है, और उनकी प्रति साध्य और श्रद्धा के भाव मनाए जाते हैं। नागों को महादेव के गले की शोभा के रूप में जाना जाता है, और नागों से जुड़ी कई धार्मिक सिद्धांत प्रचलित हैं।

    ### नागशान्तिस्तोत्रम् का लाभ:

    1. **नागदोष शांति:** जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग या नागदोष होता है, वे आर्थिक संकट, स्वास्थ्य समस्या, पारिवारिक कलह आदि विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना कर सकते हैं। नागशांतिस्तोत्रम् का पाठ नागदोष की शांति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। नियमित रूप से इसे जप करने से व्यक्तिगत इन स्मारकों से मुक्ति पा सकते हैं। नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    2. **सर्प भय से मुक्ति:** यदि किसी को सर्प भय से अत्यधिक भय है या सर्पदंश का भय सताता है, तो इस स्तोत्र का पाठ उसे मानसिक शांति और उपदेश प्रदान कर सकता है। यह नकारात्मक ऊर्जा और भय को दूर करने में सहायक होता है।नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    3. **कृषि एवं पर्यावरण संरक्षण:**नागों को कृषि के संरक्षक के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि वे किसानों को जहर से बचाते हैं। इसलिए, नागों की शांति और संतुष्टि के लिए इस स्तोत्र का पाठ करने से समुद्र की रक्षा होती है, और पर्यावरण को भी लाभ होता है।

    4. **रोग-निवारण:** नागशांतिस्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्तिगत, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ सकता है। विशेष रूप से सेलेक्ट्रिक बिल्डर या विष्णु से उत्पन्न होने वाली समस्या बहुत महत्वपूर्ण है।नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    5. **धार्मिक और आध्यात्मिक सांस्कृतिक:** यह स्तोत्र शिवजी के प्रति भक्ति भाव को और अधिक गहरा करता है। शिवजी की कृपा से व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति मिलती है, जिससे जीवन में संतुलन और स्थिरता आती है।

    ### नागशांति विधिस्तोत्रम् का पाठ:

    नागशांतिस्तोत्रम् का पाठ सुबह या शाम के समय करना चाहिए। विशेष रूप से नाग पंचमी, श्रावण मास या अन्य पवित्र अवसरों पर जाप करने से विशेष फल प्राप्त होता है। पाठ करने से पहले स्वतंत्रता का ध्यान रखें और भगवान शिव या नाग देवता की प्रतिमा के सामने पाठ करें। श्रद्धा एवं भक्ति के साथ किया गया पाठ अति फलदायक होता है।

    ### नागशांतिस्तोत्रम् का मॉडल महत्वपूर्ण:

    आज के युग में, जहाँ लोग मानसिक तनाव, आर्थिक संकट और विभिन्न शारीरिक रोगों से प्रभावित होते हैं, वहाँ यह स्तोत्र मानसिक शांति और समस्याओं के समाधान का एक सरल उपाय प्रदान करता है। इसका पाठ नियमित रूप से करने से व्यक्ति न केवल नागद्वीप और समुद्री भय से मुक्ति है, बल्कि आपके जीवन में आध्यात्मिक और आध्यात्मिक संतोष का अनुभव भी होता है। साथ ही, यह पर्यावरण एवं कृषि संरक्षण में भी सहायक सिद्ध होता है, क्योंकि नागों का हमारे पर्यावरण में महत्वपूर्ण स्थान है।नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patnahttp://Raghavpuja.com

    मूल रूप से, **नागशान्तिस्तोत्रम्** का नियमित पाठ व्यक्ति को केवल व्यक्तिगत आदर्श से मुक्ति नहीं दिलाता है, बल्कि उसे एक स्थिर और समृद्ध जीवन की दिशा में भी प्रेरित करता है।नागशान्तिस्तोत्रम् near me pandit patna

    🙏विश्वामित्र का आगमन🙏



    🙏विश्वामित्र का आगमन🙏
    अयोध्यापति महाराज दिसंबर के दरबार में यथोचित आसन पर गुरु प्रवचन, मंत्रिगण और दरबारीगण बैठे थे।
    अयोध्यानरेश ने गुरु विश्राम से कहा, हे गुरुदेव! जीवन तो क्षण भंगुर है और मैं वृद्धावस्था की ओर चरम पर जा रहा हूं। राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के चारों ओर ही राजकुमार अब वयस्क भी हो गए हैं। मेरी इच्छा है कि इस शरीर को राजकुमारों की शादी से पहले देख लें। मूलतः आपसे अनुरोध है कि इन राजकुमारों के लिए उपयुक्त कन्याओं की खोज करें। महाराज की बात बिल्कुल वैसी ही है जैसे द्वारपाल ने ऋषि विश्वामित्र के आगमन की जानकारी दी। स्वयं राजा दशरथ ने द्वार तक विश्वामित्र के अभ्यर्थना की और आदर निर्भय के दर्शन कर उन्हें दरबार के स्थान ले आये और गुरु प्रवचन के पास ही उनके यथोचित साक्षात् दर्शन दिये।
    कुशलक्षेम प्लांट के प्रसिद्ध राजा मंदिर में अंकित वाणी में ऋषि विश्वामित्र ने कहा था, हे मुनिश्रेष्ठ! आपके दर्शन से मैं कृतार्थ हुआ और आपके चरण की पवित्र धूलि से यह राजदरबार और संपूर्ण अयोध्यापुरी धन्य हो गया। अब कृपया अपना आने वाला प्रपोजल बताएं। किसी भी प्रकार की आपकी सेवा लेकर मैं स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली समझूंगा।
    राजा के विनयपूर्ण वचनों को सुनकर मुनि विश्वामित्र बोले, हे राजन! आपने अपने कुल के प्रतिबंध के सिद्धांत ही वचन कहे हैं। इक्ष्वाकु वंश के राजकुमार की गुप्त भक्ति गुरु, ब्राह्मण और ऋषि-मुनियों की प्रति सदैव एक ही रहती है। मैं आपके पास एक विशेष प्रस्ताव से आया हूं, समझिए कि कुछ अवसादों के लिए आया हूं। यदि आप मुझे प्राचीन वास्तुशिल्प के वचन देते हैं तो मैं अपनी मांग आपके समक्ष प्रस्तुत करू। आपके दिए गए वचन में मैं बिना कुछ मांगे ही वापस आ गया हूं।
    महाराज दशरथ ने कहा, हे ब्रह्मर्षि! आप अपनी मांग को पूरा करें। पूरी दुनिया जानती है कि रघुकुल के राजकुमार का वचन ही उनकी प्रतिज्ञा है। आप मांग रहे हैं तो मैं अपना शीशा कट भी आपके स्टेज पर रख सकता हूं। उनके इन वचनों से प्रेरणा लेकर ऋषि विश्वामित्र बोले, राजन! मैं अपने आश्रम में एक यज्ञ कर रहा हूँ। इस यज्ञ के पूर्णाहुति के समय मारीच और सुबाहु नाम के दो राक्षस ज्ञान रक्त, माता आदि अपवित्र देवता यज्ञ वेदी में भस्म देते हैं। इस प्रकार यज्ञ पूर्ण नहीं होता। ऐसा वे कई बार कर चुके हैं। मैं उन्हें अपने तेज़ से श्राप नष्ट भी नहीं कर सकता क्योंकि यज्ञ समय पर क्रोध करना अनुचित है।

        मुझे पता है कि आप मर्यादा का पालन करने वाले, ऋषि मुनियों के हितैषी एवं प्रजावत्सल राजा हैं। मैं विनती करता हूं कि आप ज्येष्ठ पुत्र राम की मांग करें ताकि वह मेरे साथ राक्षसों की रक्षा कर सके और मेरा यज्ञानुष्ठान निर्विघ्न पूरा हो सके। मुझे पता है कि राम आसानी से उन दोनों का संहार कर सकते हैं। मूलतः केवल दस दिन के लिए राम को मुझे दे देना। कार्य पूरा हुआ ही मैं उन्हें कुशल आपके पास वापस आ गया दंगल।
    विश्वामित्र की बात से राजा दशरथ को अत्यंत दुःख हुआ। ऐसा लगा कि अभी वे मूर्च्छित हो गये। फिर स्वयं को सहारा देकर उन्होंने कहा, मुनिवर! राम अभी बच्चा है। राक्षसों का सामना करना उसके लिए संभव नहीं होगा। आपके यज्ञ की रक्षा करने के लिए मैं स्वयं ही जाने को तैयार हूं। विश्वामित्र बोले, राजन! आप तनिक भी सन्देह नहीं कर सकते कि राम उनका सामना नहीं कर सकते। मैंने अपने योगबल से उनकी शक्तियों का अनुमान लगाया है। आप निश्चिंत राम को मेरे साथ भेज दीजिए।
    इस पर राजा दशरथ ने उत्तर दिया, हे मुनिश्रेष्ठ! राम ने अभी तक किसी राक्षस की माया प्रपंचों को नहीं देखा है और उसे इस प्रकार के युद्ध का अनुभव भी नहीं है। जब से वह पैदा हुई है, मैंने उसे अपनी आँखों के सामने से कभी ओझल भी नहीं दिया है। उसके वियोग से मेरा प्राण निकल जायेगा। आपसे विनती है कि कृपया मुझे सैंय टर्नओवर के आदेश के बारे में बताएं।
    पुत्रमोह से प्रभावित राजा दीक्षांत समारोह को अपनी प्रतिज्ञा से मनाते हुए देख ऋषि विश्वामित्र आवेश में आ गए। उन्होंने कहा, राजन! मुझे नहीं पता था कि रघुकुल में अब प्रतिज्ञा पालन की परंपरा समाप्त हो गई है। यदि पता चलता है तो मैं कदापि नहीं आता। लो मैं अब चल रहा हूँ। बात ख़त्म हो गई उनके मुँह पर गुस्सा से लाल हो गया।
    विश्वामित्र को इस प्रकार के क्रीड़ा प्रकार देखने को मिलते हैं। गुरु राजवंश ने राजा को समझाया, हे राजन! पुत्र के मोह में पतिव्रता रघुकुल की मर्यादा, प्रतिज्ञा पालन और सत्यनिष्ठा को कलंकित मत करना। मैं आपको सलाह देता हूं कि आप राम के बालक होने की बात भूल जाएं और निश्शंक राम को मुनिराज के साथ भेजें। महामुनि परम विद्वान, नीतिनिपुण और अस्त्र-शास्त्र के ज्ञाता हैं। मुनिवर के साथ जाने से राम का किसी प्रकार से भी कोई लेना-देना नहीं हो सकता, वे उनके साथ रह कर शस्त्र और शास्त्र विद्याओं में महान कलाकार हो जायेंगे और उनका कल्याण ही होगा।
    गुरु दशमी के वचनों से नकारात्मक पक्ष, राजा दशमीर ने राम को बुलाया। राम के साथ-साथ लक्ष्मण भी वहाँ चले आओ। राजा दशहरा ने राम को ऋषि विश्वामित्र के साथ जाने की आज्ञा दी। पिता की आज्ञा शिरोधार्य लेकर राम के मुनिवर के साथ जाने के लिए तैयार हो जाएं पर लक्ष्मण ने भी ऋषि विश्वामित्र से साथ चलने के लिए प्रार्थना की और अपने पिता से भी राम के साथ जाने के लिए मांग की। राम और लक्ष्मण पर सभी गुरुजनों से आशीर्वाद लेकर ऋषि विश्वामित्र के साथ चल पड़े।
    सभी अयोध्यावासियों ने देखा कि मंदिर के पीछे से मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र के पीछे की मूर्ति धनुष और टार्कस में बाण राखे दोनों भाई राम और लक्ष्मण ऐसे लग रहे थे मानो ब्रह्मा जी के पीछे दोनों अश्विनी कुमार चले जा रहे हों। अद्भुत कांति से युक्त दोनों भाई गोह की त्वचा से बने काजल के सितारे तूफ़ान थे, हाथों में धनुराम और कटि में तीक्ष्ण धार वाली कृपाणें शोभायमान हो रही थीं। ऐसा अनोखा हुआ था मनो स्वयं शौर्य ही शरीर धारण करके उठ जा रहे थे।
    टाटा विटपों के मध्य से पर्वत छत कोस महंगा मार्ग पार करके वे पवित्र सरयू नदी के तट पर पहुँचे। मुनि विश्वामित्र ने स्नेहयुक्त मधुर वाणी में कहा, हे वत्स! अब तुम लोग सरयू के पवित्र जल से आचमन स्नानादि करके अपनी थकान दूर कर लो, फिर मैं विश्राम प्रशिक्षण दूँगा। प्रथम मैं शत्रु बल और अतिबला नामक विद्या सिखाऊंगा। इन विद्याओं के विषय में राम की जिज्ञासा प्रकट होती हुई ऋषि विश्वामित्र ने बताई, ये दोनों ही विद्याएँ प्रमुख हैं। इन विद्याओं में पारंगत लोगों की गिनती दुनिया के श्रेष्ठ पुरुषों में होती है। विद्वान ने अन्वेषक ने सभी विद्याओं की जननी बताई है। इन विद्याओं को प्राप्त करके तुम भूख और प्यास पर विजय प्राप्त करो। इन तेजोमय विद्याओं की सृष्टि स्वयं ब्रह्मा जी ने की है। इन विद्याओं को पाने का अधिकारी समझ कर मैं साम्राज्य उदाहरण प्रदान कर रहा हूँ।
    राम और लक्ष्मण की स्नानादि से निवृत्त होने के मूर्तिमान विश्वामित्र जी ने उन्हें इन विद्याओं का दीक्षा दी। इन विद्याओं के प्राप्त होने पर उनके मुख मंडल पर अद्भुत होने का कांति आ गया। त्रि ने सरयू तट पर ही विश्राम किया। गुरु की सेवा के लिए दोनों भाई त्रिण साडी पर सो गए..

    🙏राम का जन्म🙏



    🙏राम का जन्म🙏
    मन्त्रीगणों तथा सेवकों ने महाराज की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया। महाराज दशरथ ने देश देशान्तर के मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया। निश्चित समय आने पर समस्त अभ्यागतों के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ जी तथा अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि को लेकर यज्ञ मण्डप में पधारे। इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारम्भ किया गया। सम्पूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूँजने तथा समिधा की सुगन्ध से महकने लगा।

        समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट कर के सादर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई। राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद चरा को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप परमपिता परमात्मा की कृपा से तीनों रानियों ने गर्भधारण किया।
    जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि श्यामवर्ण, अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अद्भुत सौन्दर्यशाली था। उस शिशु को देखने वाले ठगे से रह जाते थे। इसके पश्चात् शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ।

        सम्पूर्ण राज्य में आनन्द मनाया जाने लगा। महाराज के चार पुत्रों के जन्म के उल्लास में गन्धर्व गान करने लगे और अप्सरायें नृत्य करने लगीं। देवता अपने विमानों में बैठ कर पुष्प वर्षा करने लगे। महाराज ने उन्मुक्त हस्त से राजद्वार पर आये हुये भाट, चारण तथा आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मणों और याचकों को दान दक्षिणा दी। पुरस्कार में प्रजा-जनों को धन-धान्य तथा दरबारियों को रत्न, आभूषण तथा उपाधियाँ प्रदान किया गया। चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ के द्वारा कराया गया तथा उनके नाम रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गये।
    आयु बढ़ने के साथ ही साथ रामचन्द्र गुणों में भी अपने भाइयों से आगे बढ़ने तथा प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय होने लगे। उनमें अत्यन्त विलक्षण प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरू अल्प काल में ही वे समस्त विषयों में पारंगत हो गये। उन्हें सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को चलाने तथा हाथी, घोड़े एवं सभी प्रकार के वाहनों की सवारी में उन्हें असाधारण निपुणता प्राप्त हो गई। वे निरन्तर माता-पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे। उनका अनुसरण शेष तीन भाई भी करते थे। गुरुजनों के प्रति जितनी श्रद्धा भक्ति इन चारों भाइयों में थी उतना ही उनमें परस्पर प्रेम और सौहार्द भी था। महाराज दशरथ का हृदय अपने चारों पुत्रों को देख कर गर्व और आनन्द से भर उठता था।.

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